हुसैन साहब से जब बात करते हैं तो वे लगने ही नहीं देते हैं कि आप दुनिया के किसी बहुत बड़े पेंटर से मुखातिब हैं ! ऐसा महसूस कराते हैं जैसे किसी पहुँचे हुए मिस्टिक, सूफ़ी-संत की रूहानी तक़रीर में आप खोए हुए हैं ! या फिर यूरोप के किसी बड़े फ़िल्म मेकर से उसकी नई फ़िल्म की स्क्रिप्ट सुन रहे हैं ! या कोई बड़ा लातानी अमेरिकी कवि कंदील की लौ में अपनी नई रचना का धीमे-धीमे स्वरों में पाठ कर रहा है। तभी अचानक से बताने लगते हैं कैसे दोस्तों ने उन्हें मरा हुआ समझ लिया था और वे पुनर्जीवित हो गए ! हुसैन साहब बोलते रहते हैं ,आप चुपचाप रहते हैं। वे सवाल पूछने वाले की तरफ़ देखते ही नहीं!