भारत जोड़ो और न्याय यात्रा जैसे नामों से निकाली लंबी यात्राओं और फिर इंडिया गठबंधन (आधा-अधूरा ही सही) बनाकर नरेंद्र मोदी और भाजपा को गंभीर चुनौती देने के बाद से राहुल गांधी का सितारा निरंतर बुलंदी की तरफ गया है। लोक सभा चुनाव के परिणाम में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को जितनी जीत नहीं मिली उससे ज्यादा बड़ा राजनैतिक संदेश नरेंद्र मोदी का कद घटने से गया। इसके शासन और राजनीति पर क्या क्या असर दिख रहे हैं और सरकारी फैसलों में किस तरह की लड़खड़ाहट दिख रही है यह किसी से छुपा नहीं रहा।
महंगाई, बेरोजगारी, किसान समस्या को राहुल भी भूल जाएं तो काहे के नेता
- विचार
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- 18 Sep, 2024

अपनी यात्रा से जम्मू-कश्मीर के माहौल को गरमाने वाले राहुल वहां हो रहे चुनाव में उस तरह उपस्थित क्यों नहीं रहे हैं? यह सवाल हरियाणा चुनाव पर भी लागू होता है।
सिर्फ शासन और सरकार के इकबाल की ही बात नहीं है, भारतीय जनता पार्टी के अंदर किस तरह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी का इकबाल कम हुआ है, वह भी सबकी नज़रों में है। नया पार्टी अध्यक्ष चुनना, उत्तर प्रदेश में बदलाव, जम्मू-कश्मीर का चुनाव और हरियाणा का सिरफुटौव्वल, महाराष्ट्र चुनाव में उतरने का खौफ ही नहीं भाजपा की राजनैतिक लाइन को लेकर असमंजस रोज इस धारणा को और मजबूत बना रहे हैं। दूसरी ओर संसद के अंदर राहुल के भाषण से मची खलबली और उनके दबाव में सरकार तथा भाजपा द्वारा दनादन फैसले बदलना या हुए फैसलों को ठंढे बस्ते में डालना भी चर्चा में रहा है। और राहुल के अड़ने पर अब जनगणना और जातिवार जनगणना की पहल का इशारा भी यह बताता है कि सरकार को विपक्षी दबाव भारी पड़ने लगा है।