दो लोकसभा चुनाव, कई राज्यों में चुनावी हार के साथ ही पार्टी नेताओं के बीच चल रहे झगड़ों के कारण पस्त पड़ी कांग्रेस न सिर्फ खड़ी होती बल्कि जोरदार ढंग से लड़ती भी दिख रही है। पार्टी ने बीते कुछ महीनों में किसान आंदोलन, महंगे पेट्रोल-डीजल, बेरोज़गारी जैसे जनता के मुद्दों को तो जोर-शोर से उठाया ही है, अपने पुराने समर्थक यानी दलित समुदाय को भी फिर से पाले में खींचने की पूरी कोशिश की है।
उत्तर प्रदेश में अंतिम सांसें गिन रही कांग्रेस इस बार पूरी ताक़त झोंक देना चाहती है। पार्टी की महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने लखीमपुर की घटना सहित उत्तर प्रदेश के बाक़ी मुद्दों पर भी जोरदार ढंग से आवाज़ बुलंद की है।
प्रियंका ने नया दांव पीएल पूनिया को प्रचार कमेटी का अध्यक्ष बनाकर खेला है।
पीएल पूनिया दलित समुदाय से आते हैं। आज़ादी के बाद लंबे वक़्त तक उत्तर प्रदेश में सत्ता कांग्रेस के पास रही है। तब ब्राह्मणों और मुसलमानों के साथ ही दलित भी मजबूती से कांग्रेस के साथ खड़े रहते थे।
इसका नतीजा यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कमजोर हो गई और बीते तीन दशक से वहां वापसी नहीं कर सकी है।
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लेकिन इस बार प्रियंका ने कमान अपने हाथ में ली है। इसी के साथ बेहद अहम प्रचार कमेटी के अध्यक्ष के पद पर दलित समुदाय के नेता का चयन कर प्रियंका ने संदेश दिया है कि दलित समुदाय को बड़ी जगह और पूरा सम्मान कांग्रेस ही दे सकती है।
बीते कुछ दिनों में आप देखें तो पार्टी ने दलित नेताओं को बड़े ओहदे भी दिए हैं और उन्हें कांग्रेस में शामिल भी कराया है।
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चन्नी वाला मास्टर स्ट्रोक
इसमें चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने जैसा मास्टर स्ट्रोक भी शामिल है। चन्नी पहले ऐसे दलित नेता हैं जो पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं। इस समुदाय की नाराज़गी इसी बात को लेकर थी कि बावजूद इसके कि पंजाब में दलित समुदाय की आबादी सबसे ज़्यादा है, कोई भी दल उनके समुदाय के नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाता। लेकिन कांग्रेस ने यह करके दिखाया।
इसके बाद गुजरात के निर्दलीय विधायक और चर्चित दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को कांग्रेस ने जगह दी है। उत्तराखंड के बड़े दलित नेता यशपाल आर्य की घर वापसी कराने में पार्टी सफल रही है।
इससे साफ लगता है कि किसी एक राज्य में नहीं, बल्कि कई राज्यों में पार्टी दलित समुदाय को वरीयता दे रही है और चाहती है कि यह समुदाय एक बार फिर उसके साथ जुड़े।
हाथरस में दलित परिवार की बेटी के साथ हुए बलात्कार और रात को ही उसे जला देने के मामले को भी कांग्रेस ने जोर-शोर से उठाया था। इसके बाद दिल्ली में दलित समुदाय की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद राहुल गांधी ख़ुद बच्ची के घर गए थे।
इससे यह भी साफ है कि कांग्रेस दलितों की आवाज़ को पूरी ताक़त के साथ उठाने में पीछे नहीं है।
प्रचार कमेटी के अध्यक्ष को अमूमन चुनावी चेहरा माना जाता है। इसलिए प्रियंका के बाद आने वाले दिनों में उत्तर प्रदेश कांग्रेस में पीएल पूनिया ही बड़े चेहरे के तौर पर दिखाई दे सकते हैं।
कांग्रेस को वोट देंगे दलित?
कांग्रेस ने बीते दिनों में दलितों के हक़ में आवाज़ बुलंद करने से लेकर पार्टी में पद देने तक क़दम तो काफी उठाए हैं लेकिन देखना होगा कि क्या दलित समुदाय भी कांग्रेस के साथ फिर से जुड़ेगा। क्या वह बाक़ी दलों के बजाय कांग्रेस को तरजीह देगा?
इसका पता पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों से चल जाएगा। क्योंकि पांच चुनावी राज्यों में से तीन- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में दलित समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है। देखना होगा कि ये समुदाय पंजे के निशान के सामने वाला बटन दबाएगा या नहीं?
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