“बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जाति के आधार पर भेदभाव करता है।“ यह आरोप है एक दलित छात्र शिवम सोनकर का, जो पिछले 14 दिनों से कुलपति के निवास के बाहर धरने पर बैठे हैं। उनकी माँग साफ है, उन्हें पीएचडी में प्रवेश दिया जाए। यह माँग सिर्फ एक सीट की नहीं, बल्कि उस भेदभाव के खिलाफ है, जो उनकी नज़र में विश्वविद्यालय की नीतियों में गहरे तक समाया हुआ है। शिवम की यह कहानी बीएचयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में जातिगत आधार पर होने वाली कथित नाइंसाफी को भी सामने लाती है।
BHU में दलित को PHD में दाखिले के लिए संघर्ष क्यों करना पड़ रहा?
- उत्तर प्रदेश
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- 4 Apr, 2025
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में एक दलित छात्र को PhD में दाखिला पाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। क्या यह प्रशासनिक प्रक्रिया है या जातिगत भेदभाव की झलक? जानिए इस मुद्दे की पूरी सच्चाई।

शिवम सोनकर की लड़ाई पीएचडी में दाखिला लेने को लेकर शुरू हुई थी। उन्होंने पीस एंड कॉन्फ्लिक्ट स्टडीज विभाग में रिसर्च एंट्रेंस टेस्ट यानी आरईटी (RET) के तहत अप्लाई किया था। उन्होंने अपना आवेदन नॉन-जूनियर रिसर्च फेलोशिप यानी नॉन-JRF श्रेणी के लिए दिया था। परीक्षा में शिवम ने दूसरा स्थान हासिल किया। यह नतीजा उनकी मेहनत और काबिलियत का सबूत था। इसके बावजूद उन्हें प्रवेश से वंचित कर दिया गया। विभाग में कुल सात सीटें थीं। इनमें से चार सीटें जूनियर रिसर्च फेलोशिप यानी JRF के लिए थीं, जबकि तीन सीटें नॉन-जेआरएफ़ के लिए रखी गई थीं।