हाथरस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच का आदेश सरकारों और प्रशासनिक अधिकारियों को झकझोरने वाला है। कोर्ट का यह सवाल क्या पूरी व्यवस्था को हिलाने के लिए काफ़ी नहीं है कि क्या आर्थिक-सामाजिक हैसियत की वजह से पीड़ित परिवार के अधिकार रौंदे गए? क्या इसी वजह से उनकी प्रताड़ना हुई? और क्या एक सम्मानजनक अंतिम संस्कार तक नहीं हो पाया? क्या वजह है कि कोर्ट को शांति के दूत महात्मा गाँधी से लेकर महान कवि ऑस्कर वाइल्ड तक का ज़िक्र करना पड़ रहा है? हाईकोर्ट को क्यों संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर उच्च न्यायालयों की व्याख्या का हवाला देना पड़ रहा है? क्या यह सिर्फ़ इसलिए है कि अदालत ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया व उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है या फिर समस्या इससे कहीं बड़ी है?
हाईकोर्ट: जिन आला अफ़सरों ने शव जलाने को सही ठहराया उन पर भी नज़र!
- उत्तर प्रदेश
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- 29 Mar, 2025
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस गैंगरेप मामले का स्वत: संज्ञान लिया है। अदालत ने राज्य प्रशासन से सख्त लहजे में कहा है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि पीड़िता के परिवार पर कोई भी किसी तरह का दबाव नहीं डाल सके।
