त्रिपुरा में हुई हिंसा के मामले में सोशल मीडिया पर अपनी बात रखने वाले कुछ पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर वहां की राज्य सरकार ने एफ़आईआर दर्ज की थी और यूएपीए लगा दिया था। 70 से ज़्यादा ऐसे लोग थे, जिन पर यह कठोर क़ानून लगाया गया था।
पत्रकार श्याम मीरा सिंह पर भी यूएपीए लगा था। उन्होंने और सुप्रीम कोर्ट के वकीलों अंसार इंदौरी और मुकेश ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। इन दोनों वकीलों ने हिंसा के बाद स्वतंत्र फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम के सदस्य के तौर पर त्रिपुरा का दौरा भी किया था। इन लोगों ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के जरिये याचिका दायर की है।
याचिका में इस मामले में सुनवाई करने और यूएपीए के तहत दर्ज की गई एफ़आईआर को रद्द करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है।
इससे पहले त्रिपुरा हाई कोर्ट ने हिंसा के मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। फ़ैक्ट फ़ाइडिंग टीम के सदस्य के तौर पर गए वकीलों को नोटिस भी जारी किए गए हैं।
बुधवार को इस मामले में सीजेआई रमना ने प्रशांत भूषण से कहा कि वे लोग त्रिपुरा हाई कोर्ट के सामने क्यों नहीं जाते। इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि इसलिए क्योंकि याचिका में यूएपीए को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले में जल्द से जल्द सुनवाई की ज़रूरत है क्योंकि याचिका दायर करने वालों की कभी भी गिरफ़्तारी हो सकती है।
सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि जल्द ही इस मामले में सुनवाई की तारीख़ तय की जाएगी।
फ़ेक न्यूज़ फैलाने का आरोप
त्रिपुरा पुलिस की ओर से दर्ज एफ़आईआर में आरोप लगाया गया है कि श्याम मीरा सिंह और अन्य लोगों ने फ़ेक न्यूज़ फैलाई और आपत्तिजनक कंटेंट को शेयर किया जबकि राज्य सरकार ने किसी भी मसजिद में तोड़फोड़ के आरोपों और स्थानीय मुसलिम समुदाय पर हमले के आरोपों को खारिज कर दिया था।
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श्याम मीरा सिंह का कहना है कि उन्होंने इस मामले में वही कहा है जिसे त्रिपुरा हाई कोर्ट ने भी कहा है। उन्होंने एनडीटीवी से कहा कि जो बात अदालत ने कही, अगर वही बात कोई पत्रकार कहे तो उस पर यूएपीए लगा दिया जाता है। उन्होंने कहा कि अगर मुल्क़ में लोकतंत्र है तो वह बिलकुल चिंतित नहीं हैं।
त्रिपुरा पुलिस ने इस मामले में फ़ेसबुक, ट्विटर और यू ट्यूब से संपर्क किया था और उनसे 100 से ज़्यादा सोशल मीडिया अकाउंट्स की जानकारी मांगी थी। पुलिस ने कहा था कि इन अकाउंट्स का इस्तेमाल फ़ेक और भड़काऊ पोस्ट करने के लिए किया गया। इसके बाद पुलिस ने 70 से ज़्यादा लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया था।
विहिप की रैली
त्रिपुरा के पानीसागर और कुछ अन्य इलाक़ों में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को लेकर सोशल मीडिया पर ख़ासी बहस हुई थी। हिंसा की ये घटनाएं पानीसागर के साथ ही ऊनाकोटी और सिपाहीजाला जिलों में भी हुई थीं। हिंसा की ये घटनाएं विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की रैली के बाद हुई थीं। विहिप ने यह रैली बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों और दुर्गा पूजा के पंडालों पर हुए हमलों के विरोध में 26 अक्टूबर को निकाली थी।
सरकार ने भी किया था इनकार
राज्य के सूचना मंत्री सुशांत चौधरी ने कहा था कि पुलिस की जांच में पता चला है कि पानीसागर में किसी भी मसजिद में आग नहीं लगाई गई है। राज्य सरकार ने कहा था कि कुछ बाहरी लोगों ने अपने फ़ायदे के लिए सोशल मीडिया पर मसजिद जलाने के फर्जी फ़ोटो अपलोड किए।
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