त्रिपुरा में हुई हिंसा के मामले में सोशल मीडिया पर अपनी बात रखने वाले कुछ पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर वहां की राज्य सरकार ने एफ़आईआर दर्ज की थी और यूएपीए लगा दिया था। 70 से ज़्यादा ऐसे लोग थे, जिन पर यह कठोर क़ानून लगाया गया था।