करीब एक महीने के राजनीतिक हो-हल्ले के बाद दिल्ली नगर निगम के चुनावों के प्रचार का शोर थम गया है। अब चार दिसंबर को वोटिंग और उसके बाद 7 दिसंबर को नतीजे आने के बाद यह शोर फिर जोर पकड़ेगा। फिर से विश्लेषण होंगे कि मुफ्त की राजनीति जनता के दिमाग पर हावी रही या फिर मोदी जी का जादू चल गया। दिल्ली में कूड़े के ढेर के हल्ले को जनता ने प्रमुखता दी या फिर आम आदमी पार्टी पर किए गए भ्रष्टाचार के हमले ज्यादा कारगर साबित हुए।
MCD: चुनाव प्रचार में तो टक्कर कांटे की लग रही है
- दिल्ली
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- 3 Dec, 2022

बीजेपी 15 साल तक लगातार एमसीडी की सत्ता में रही। इस बार आम आदमी पार्टी से उसे तगड़ी चुनौती मिल रही है। क्या आम आदमी पार्टी उसे हरा पाएगी? एमसीडी में इस बार किसका मेयर बनेगा, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई हैं।
मगर, चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद और वोटिंग से पहले का मूड यह जरूर बताता है कि दिल्ली में इस बार मुकाबला कांटे का होने वाला है। दोनों ही पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर है और भविष्य की राजनीति पर नगर निगम के चुनाव बड़ा असर डालने वाले हैं। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उसे सिर्फ यही गिनती करनी है कि उसका वोट प्रतिशत 4 फीसदी से ऊपर उठा है या नहीं और उठा है तो कितना उठा है।
चुनाव प्रचार के शुरू से ही बीजेपी की यह रणनीति रही कि वह इस चुनाव को नगर निगम के मुद्दों पर नहीं बल्कि केजरीवाल के कामकाज पर कराएगी। दरअसल पिछले 15 सालों से दिल्ली में बीजेपी काबिज है लेकिन पहले छह साल तो शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के थे। उस दौरान भी 2012 तक तो नगर निगम एक ही थी। तब नगर निगम को किसी तरह भी फंड का अभाव नहीं था। नगर निगम का भरणपोषण केंद्र सरकार को करना होता था और तब राजनीति की दृष्टि इतनी संकीर्ण नहीं थी कि फंड रोककर किसी सरकार को काम नहीं करने दिया जाए।