एक महीने तक चले सियासी संकट के बाद राजस्थान कांग्रेस के बाग़ी नेता सचिन पायलट सोमवार रात को पार्टी में लौट आए। पायलट की बग़ावत के बाद नेतृत्व क्षमता को लेकर बीजेपी के सियासी तीर झेल रहे कांग्रेस आलाकमान ने भी राहत की सांस ली। इसके साथ ही बीजेपी का राजस्थान में सरकार बनाने का सपना अधूरा रह गया। लेकिन यहां हम बात करेंगे दो अहम सवालों की।
राजस्थान: क्या रहा सुलह का फ़ॉर्मूला; दिल्ली आएंगे या राज्य की राजनीति करेंगे पायलट?
- राजस्थान
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- 6 Mar, 2021

कुल मिलाकर राजस्थान में दिसंबर, 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव तक पायलट और गहलोत के बीच ये लड़ाई चलती रहेगी और देखना होगा कि क्या कांग्रेस आलाकमान उससे पहले पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपता है या गहलोत को ही इस पद पर बनाए रखता है। पहले कुर्सी सौंपना इसलिए ख़तरनाक है क्योंकि गहलोत अगर बग़ावत करेंगे तो उसे संभालना बेहद मुश्किल होगा। ऐसे में आलाकमान को बेहद सतर्क रहना होगा।
पहला सवाल यह कि गहलोत-पायलट के इस विवाद को सुलझाने का क्या फ़ॉर्मूला निकाला गया और दूसरा यह कि पायलट कांग्रेस में लौट तो आए हैं लेकिन आगे का उनका रास्ता क्या होगा।
पहले सवाल से ही बात शुरू करते हैं। पायलट प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री जैसे अहम पद गंवा चुके हैं। उन्होंने इस संकट के दौरान बार-बार मान-सम्मान और स्वाभिमान की बात की है, इसलिए यह लाजिमी होगा कि अगर वह राजस्थान की राजनीति में वापस लौटेंगे तो वे इन भारी-भरकम पदों पर किसी भी सूरत में समझौता नहीं करना चाहेंगे।
लेकिन राजनीति में ये इतना आसान नहीं होता कि किसी राष्ट्रीय पार्टी में आज किसी को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया और कल हटा दिया। इसलिए राजस्थान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी उन्हें मिलना बेहद मुश्किल है। बात उप मुख्यमंत्री की कुर्सी की है तो वह उन्हें मिल ही जाएगी।