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आदिवासी नेता डॉ किरोड़ी लाल मीणा

राजस्थानः 'दो लाल' का झगड़ा, किरोड़ी लाल का अगला कदम क्या होगा?

राजस्थान की शांत पड़ी राजनीति में अगले दो दिन भूचाल ला सकते हैं. इससे मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की कुर्सी तो शायद नहीं डगमगाए लेकिन राज्य की राजनीति करवट ले सकती है. बीजेपी ने पार्टी के कद्दावर आदिवासी नेता, दो बार के मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में भी रह चुके डॉ किरोड़ी लाल मीणा को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. जिसकी मियाद बुधवार शाम तक की बताई जाती है . 
किरोड़ी लाल ने पार्टी नेतृत्व को तय समय में जवाब देते हुए खुद को अनुशासित सिपाही बताया है. इससे ही साफ है कि वह सियासी शहीद का दर्जा हासिल करते हुए पार्टी से अलग होने के हालात पैदा कर रहे हैं. दरअसल एक साल से किरोड़ी लाल मीणा का कृषि मंत्री पद से इस्तीफा मुख्यमंत्री के पास लंबित है. न तो इस्तीफा राज्यपाल के पास भेजा गया , न ही  कई बार कहने पर मीणा ने इस्तीफा वापस लिया और न ही इस दौरान मीणा ने अपनी ही सरकार पर सवाल दागने कम किए.
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बीजेपी की रणनीति

बीजेपी चाहती थी कि डॉ किरोड़ी लाल खुद ही पार्टी छोड़ कर चले जाएं ताकि उनपर मीणा ( अनुसूचित जाति ) वोटरों की उपेक्षा करने का आरोप न लगे. ऐसा नहीं है कि किरोड़ी लाल को मनाने की कोशिश नहीं हुई. उन्हें जे पी नड्डा ने दिल्ली बुलाया. कहा जाता है कि अमित शाह के संदेशे भी उन तक पहुंचाए गए लेकिन मीणा टस से मस नहीं हुए . वरिष्ठता को नजरअंदाज कर कृषि मंत्रालय जैसा पद ही दिया गया जो 18 साल भी दिया गया था. एक आध अतिरिक्त मंत्रालय छीन लिए गये . ट्रांसफर पोस्टिंग की सिफारिशों में अड़ंगे लगाए गये . दौसा विधानसभा सीट से उपचुनाव में उनके भाई जगमोहन मीणा को टिकट जरुर दिया गया लेकिन वहां भी ( किरोड़ी लाल के अनुसार ) हरवा दिया गया .
किरोड़ी लाल ने जयपुर के गांधीनगर इलाके में सरकारी बंगलों को तोड़ कर गगनचुंबी फ्लैट की स्कीम में हजार करोड़ से ज्यादा की गड़बड़ी का आरोप लगाया. परीक्षा लीक मामलों में बड़ी मछलियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए भजन सरकार को कटघरे में खड़ा किया. कुछ मामलों में अपनी तरफ से सबूत भी पुलिस को देने गये. बीजेपी आलाकमान खून के घूंट पीते हुए इस आस में चुप रही कि मीणा खुद ही पार्टी छोड़ देंगे लेकिन ऐसी सियासी नासमझी मीणा को न तो करनी थी और न की .
ताजा आरोप गंभीर था. मीणा ने अपनी ही सरकार पर फोन टैपिंग का आरोप लगाया. इसके बाद ही आला कमान हरकत में आया और तीन दिन में कारण बताओ नोटिस का जवाब देने को कहा.

किरोड़ी का जवाब क्या होगा

जानकारों का कहना है कि किरोड़ी लाल न तो माफी मांगने के मूड में है और न ही भजनलाल सरकार को बख्शने के मूड में . वह खुद को पार्टी का अनुशासित सिपाही बताते हुए तमाम आरोपों को फिर दोहरा सकते हैं . वह उल्टे आलाकमान के सामने राज्य सरकार की कार्यशैली को मुद्दा बना सकते हैं.
जानकारों का कहना है कि मीणा वोट कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो रहे हैं. मीणा बाहुल्य  दौसा लोकसभा सीट पर प्रचार करते हुए किरोड़ी लाल ने खुद ही ऐसा अनुभव किया था. तब उनका वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वह कह रहे थे कि अपने ही मीणा समाज के लोग साथ नहीं दे रहे हैं और कह रहे हैं कि आग लगने दो मोदी को. ऐसे में बीजेपी में रहते हुए किरोड़ी लाल का सियासी कद घटता ही जा रहा था. पिछले एक साल से भले ही बीजेपी ने इस्तीफा पर फैसला नहीं किया हो लेकिन उनकी नाराजगी दूर करने की गंभीर कोशिश भी नहीं की.
कहा जा रहा है कि किरोड़ी लाल की कांग्रेस नेताओं से अंदरखाने बात चल रही है और वसुंधरा राजे भी पर्दे के पीछे सक्रिय हैं. वैसे इसके अलग अलग कारण बताए जा रहे हैं.

कांग्रेस का गणित

माना जाता है कि कांग्रेस का एक धड़ा किरोड़ी लाल मीणा को साथ में लाना चाहता है. इसमें सचिन पायलट का भी नाम लिया जाता है जो गुर्जर मीणा और जाट का नया जातीय समीकरण बनाने के इच्छुक बताए जाते हैं. अगर ऐसा होता है तो सचिन पायलट की सियासी ताकत में इजाफा होगा. गुर्जर आंदोलन से पहले वैसे भी पूर्वी राजस्थान में गुर्जर और मीणा मिलकर काम करते रहे हैं. वर्तमान बीजेपी सरकार से जाट भी नाराज दिख रहा है और सचिन पायलट को लगता है कि नया गठजोड़ अगले विधानसभा चुनाव में उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में भी मददगार साबित हो सकता है . 
वसुंधरा राजे का राज़ः सूत्र बताते हैं कि वसुंधरा राजे अंदर ही अंदर बीजेपी और भजनलाल सरकार से नाराज हैं और वह भी किरोड़ी लाल मीणा को मोहरा के रुप में इस्तेमाल करना चाहती हैं. अगर मीणा बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में चले जाते हैं या नई पार्टी भी बना लेते हैं तो वसुंधरा बीजेपी आलाकमान के सामने राज्य सरकार की सियासी विफलता का मसला खड़ा कर अपने और अपने समर्थकों के लिए जमीन तलाश सकती हैं.

मीणा समाज की सियासी ताकत

राजस्थान में राजपूत और जाट की तरह मीणा भी मार्शल कौम कहलाती है. मीणा आबादी यूं तो 9 फीसद के आसपास है लेकिन यह पूर्वी राजस्थान से लेकर दक्षिण राजस्थान के आदिवासी इलाकों तक फैली हुई है. कहा जाता है कि विधानसभा की 200 सीटों में से 25  सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. इनमें से ज्यादातर पर मीणा ही कब्जा करते रहे हैं. इसके अलावा एक दर्जन सामान्य सीटों पर मीणा वोटर निर्णायक असर रखते हैं. 
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इसी तरह लोकसभा की 25 में से करीब आधा दर्जन सीटों पर मीणा वोट अपना असर रखते हैं. राज्य में दो तरह के मीणा मिलते हैं. एक, दक्षिण राजस्थान के भील मीणा जो गरीब वंचित हैं. आरक्षण का लाभ भी कम ही लोग उठा पाते हैं. दो, पूर्वी राजस्थान ( दौसा, हिंडौन, सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी, अलवर, जयपुर का ग्रामीण इलाका आदि ) का मीणा पढ़ा लिखा है. आरक्षण का लाभ उठाते हुए बड़ी संख्या में आईपीएस, आईएएस और राज्य सरकार की प्रशासनिक सेवा में उच्च पदों पर है. ऐसे में मीणा समाज राजनीतिक रुप में भी प्रभावशाली हैसियत रखता है.  डॉ किरोड़ी लाल मीणा का अगला कदम राजस्थान की राजनीति में दिलचस्प मोड़ लाएगा.
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विजय विद्रोही
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