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राजस्थान बीजेपी में क्या फिर वसुंधरा की चलेगी; भजन लाल का क्या होगा?

राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मिलना क्या हुआ, सत्ता के गलियारों में कानाफूसी और अफवाहों का दौर शुरू हो गया। कुछ ने कहा कि मंत्रिमंडल विस्तार जल्द होने वाला है और वसुंधरा के समर्थकों के अच्छे दिन आने वाले हैं। कुछ का कहना है कि भजनलाल सरकार अब राजनीतिक नियुक्तियाँ करने वाली है और वसुंधरा ने अपनों की पर्ची भजनलाल को थमा दी है। कांग्रेस भजनलाल सरकार को पर्ची सरकार कहती रही है और वसुंधरा के हाथों ही राजनाथ सिंह ने बीजेपी आलाकमान की तरफ़ से भेजी गयी पर्ची खुलवा कर भजनलाल का नाम बुलवाया था।  

कुल मिलाकर 35 मिनट की इस मुलाक़ात की चर्चा जिस हिसाब से हो रही है उससे साफ़ है कि राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा की प्रासंगिकता कायम है, वसुंधरा का दबदबा भले ही कम हुआ हो लेकिन उनकी मौजूदगी हाशिए पर नहीं डाली जा सकती।

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तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मिलने उनके घर जाते हैं। 35 मिनट बाद खुशी खुशी बाहर निकलते हैं। कहा जा रहा है कि फरवरी में बजट पेश होना है, लिहाजा वसुंधरा से कुछ ज़रूरी टिप्स लेने गये थे। हो सकता है कि राय लेने गये हों और राय से संतुष्ट भी नज़र आए हों। लेकिन इस समय राज्य में संगठन चुनाव की प्रक्रिया चल रही है लिहाजा इस की चर्चा ज़रूर हुई होगी। संगठन चुनाव के बाद प्रदेश अध्यक्ष चुना जाना है। पहले सतीश पूनिया, फिर सी पी जोशी को वसुंधरा की बिना सहमति के प्रदेश बीजेपी की कमान सौंपी गयी थी। लेकिन वर्तमान अध्यक्ष मदन राठौड़ वसुंधरा की सहमति से बनाए गये जिनके शपथ ग्रहण समारोह में वसुंधरा का जाना भी हुआ था। जाहिर है कि नये अध्यक्ष की नियुक्ति प्रक्रिया से वसुंधरा को जोड़ने का इच्छुक आलाकमान लगता है और भजनलाल के जरिए वसुंधरा तक संदेशा भिजवाया गया।

वसुंधरा का कुछ समय पहले प्रधानमंत्री मोदी से मिलना हुआ था। उस मुलाकात के बाद वह राज्य में सक्रिय भी हुई हैं। कहा जाता है कि संघ के कहने पर मोदी ने वसुंधरा को मिलने के लिए बुलाया था। मुलाक़ात के दौरान वसुंधरा ने साफ़ कर दिया था कि वह राज्यपाल बनने की इच्छुक नहीं हैं और राज्य में सक्रिय राजनीति करना चाहती हैं। स्वाभाविक है कि वसुंधरा को भी अच्छी तरह से अहसास हो चला है या यूँ कहा जाए कि अहसास करवाया जा चुका है कि तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं बची है। 

ऐसे में वसुंधरा चाहती हैं कि उनके समर्थकों को सरकार और संगठन में उचित जगह दी जाए। इनमें कालीचरण सर्राफ, श्रीचंद कृपलानी का नाम खासतौर से लिया जा रहा है। माना जा रहा है कि बजट सत्र के बाद भजन मंत्रिमंडल का विस्तार या फेरबदल हो सकता है। कुछ को हटाया जा सकता है और वसुंधरा समर्थकों को शरीक किया जा सकता है। 
इसी तरह क़रीब दो दर्जन से ज़्यादा राजनीतिक नियुक्तियों का समय भी आ गया है। यहाँ भी वसुंधरा को आलाकमान नाराज़ नहीं करना चाहता। तो बहुत संभव है कि भजन वसुंधरा मुलाकात में इन दो विषयों पर व्यापक बातचीत हुई हो।
कहा जा रहा है कि वसुंधरा जब मोदी से दिल्ली में मिली थीं तब उन्होंने अपने गिले-शिकवे सामने रखे थे। मोदी ने अमित शाह से इस पर चर्चा की और फिर जे पी नड्डा ने भजन लाल के माध्यम से वसुंधरा तक संदेश भिजवा दिया है। इस बीच वसुंधरा राजे को हकीकत का अहसास है और वह जान चुकी है कि बहुत ज्यादा दबाव डालने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में वह शायद यही चाहती हैं कि वफादार नेताओं को सरकार और संगठन में सम्मान मिले। चूँकि इनकी संख्या ज्यादा नहीं है और भजन लाल सरकार को ऐसे नेता चुनौती देने की ताक़त भी नहीं रखते हैं लिहाजा भजन लाल को ऐसे नेताओं को एडजस्ट करने में परेशानी नहीं होनी चाहिए।
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मजे की बात है कि वसुंधरा भजन मुलाक़ात को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने वाले वसु समर्थकों को प्रदेश प्रभारी राधा मोहन दास अग्रवाल ने ठंडा कर दिया। अग्रवाल का कहना है कि मंत्रिमंडल में विस्तार या फेरबदल की अभी कोई ज़रूरत महसूस नहीं की जा रही है। जब ज़रूरत महसूस होगी तब मुख्यमंत्री जी अपने हिसाब से फ़ैसला कर लेंगे।

हालांकि, अग्रवाल ने इशारा किया कि मंत्रिमंडल को छेड़ा जाएगा तो पूरी तरह से खंगाला जाएगा। निकम्मे हटाए जाएंगे, काम करने वालों को प्रमोट किया जाएगा और नये लोगों को भी हिस्सा बनाया जाएगा। इससे मंत्रियों में घबराहट का माहौल है। कहा जा रहा है कि बजट सत्र के दौरान मंत्रियों के कामकाज का आलाकमान पूरा हिसाब रखेगा और बाकायदा रिपोर्ट कार्ड तैयार की जाएगी। यानी मंत्रिमंडल में विस्तार और संगठन में फेरबदल के साथ-साथ सियासी पदों पर नियुक्तियाँ फरवरी के अंत या मार्च में हो सकती है। विधायकों से लेकर अन्य नेताओं में से किसके अच्छे दिन आएंगे देखना दिलचस्प रहेगा। साथ ही, इनमें वसुंधरा समर्थक कितने होंगे, इस पर भी नजर रहेगी।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)
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विजय विद्रोही
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