कृषि क़ानूनों को लेकर बीजेपी और मोदी सरकार को एक और तगड़ा झटका लगा है। शिरोमणि अकाली दल के बाद राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के संयोजक हनुमान बेनीवाल ने भी एनडीए से अपनी राहें अलग कर ली हैं। बेनीवाल ने शनिवार को ही किसानों और पार्टी कार्यकर्ताओं के हुजूम के साथ दिल्ली कूच किया है।
बेनीवाल पिछले कई दिनों से राजस्थान के अपने प्रभाव वाले इलाक़ों में जनसंपर्क में जुटे हुए थे और उन्होंने 26 दिसंबर को किसानों और पार्टी कार्यकर्ताओं से दिल्ली कूच करने का आह्वान किया था।
हरियाणा पुलिस ने दिल्ली कूच के इस एलान को देखते हुए शुक्रवार को दिन में 2 बजे जयपुर-दिल्ली हाईवे की दूसरी लेन को बंद कर दिया था। पहली लेन पिछले कई दिनों से बंद है।
हरियाणा-राजस्थान के रेवाड़ी बॉर्डर पर पहले से ही बड़ी संख्या में किसान डेरा डालकर बैठे हुए हैं। इसके अलावा शाहजहांपुर-खेड़ा बॉर्डर पर भी किसानों का धरना जारी है। टिकरी और सिंघु बॉर्डर की तरह यहां भी किसानों ने डेरा डाला हुआ है। महाराष्ट्र से आने वाले किसान भी यहां पहुंच चुके हैं।
बेनीवाल ने कृषि क़ानूनों के समर्थन में कुछ दिन पहले संसद की तीन लोकसभा कमेटियों से इस्तीफ़ा दे दिया था। बेनीवाल ने कहा था कि सरकार किसानों के आंदोलन को कुचलना चाहती है।
राजस्थान के नागौर से लोकसभा के सांसद बेनीवाल ने 30 नवंबर को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा था कि तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने व स्वामीनाथन आयोग की सभी सिफ़ारिशों को लागू करने का काम तुरंत नहीं किया गया तो आरएलपी के एनडीए में बने रहने पर पुनर्विचार किया जाएगा। बेनीवाल की पार्टी ने पिछले साल लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ गठबंधन किया था।
राजस्थान में आबादी के लिहाज से सबसे बड़े जाट समुदाय से आने वाले बेनीवाल शायद इस बात को जानते हैं कि किसानों के इस आंदोलन के दौरान अगर वे सरकार के साथ दिखे तो उन्हें सियासी नुक़सान हो सकता है।
नागौर से लेकर बाड़मेर तक में जाट समुदाय के लोगों के बीच बेनीवाल का अच्छा आधार माना जाता है।
अकाली दल ने दिया था झटका
कृषि क़ानूनों को लेकर बीजेपी कुछ महीने पहले ही करारा झटका खा चुकी है। तब उसकी पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने उसका साथ छोड़ दिया था। अकाली दल के कोटे से कैबिनेट मंत्री हरसिमरत कौर ने इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके बाद पंजाब और हरियाणा में इन क़ानूनों के विरोध में आंदोलनों ने तेज़ी पकड़ी और किसानों ने 26 नवंबर को दिल्ली कूच का एलान कर दिया।विपक्ष ने बढ़ाया दबाव
कृषि क़ानूनों के मसले पर तमाम विपक्षी दलों ने भी केंद्र सरकार पर ख़ासा दबाव बढ़ा दिया है। किसानों की भूख हड़ताल से लेकर भारत बंद तक के कार्यक्रम को विपक्षी दलों का समर्थन मिला है। हालांकि किसानों ने अपने आंदोलन को पूरी तरह ग़ैर राजनीतिक रखा है लेकिन मोदी सरकार से लड़ने में ख़ुद को अक्षम पा रहे विपक्ष को किसान आंदोलन से ऊर्जा मिली है और वह खुलकर किसानों के समर्थन में आगे आया है।किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो-
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