पंजाब में लंबे समय तक बीजेपी के साथ राजनीति करते रहे शिरोमणि अकाली दल को कृषि क़ानूनों के पुरजोर विरोध के कारण सियासी राहें अलग करनी पड़ीं। कृषि क़ानूनों को लेकर पंजाब की सियासत में आलम यह है कि मोदी लहर के भरोसे वहां विस्तार करने में जुटी बीजेपी के नेताओं का जनता को इन क़ानूनों के बारे में बताना तक मुश्किल हो गया है। ऐसे में विस्तार तो दूर की बात है।
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन की शुरुआत पंजाब से ही हुई। तीन महीने तक पंजाब में आंदोलन के बाद किसानों ने 26 नवंबर को दिल्ली कूच का एलान किया। तब तक पंजाब का सियासी माहौल गर्म हो चुका था।
एनडीए से नाता तोड़ा
किसानों के इन क़ानूनों के पुरजोर विरोध में उतरने के कारण ही अकाली दल ने एनडीए से नाता तोड़ा और सरकार में शामिल मंत्री हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफ़ा करवा दिया। पिछले विधानसभा चुनाव में बुरी हार का स्वाद चख चुका अकाली दल यह नहीं चाहता था कि उसका मूल वोट बैंक यानी किसान और गांवों में रहने वाले लोग उससे नाराज़ हों, इसके लिए उसने मंत्री पद की कुर्बानी दे दी।
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खालिस्तानी कहे जाने से नाराज़
इधर, किसान आंदोलन को मोदी सरकार के लिए चुनौती बनता देख बीजेपी के कुछ नेताओं और सरकार के मंत्रियों ने इस आंदोलन में खालिस्तान समर्थकों का हाथ होने की बात कहनी शुरू कर दी। ट्विटर और फ़ेसबुक पर दक्षिणपंथी ट्रोल आर्मी द्वारा किसानों को खालिस्तानी कहा जाने लगा। इससे पंजाब और दुनिया भर में रह रहे पंजाबियों के बीच बेहद ख़राब मैसेज गया। किसानों को खालिस्तानी कहे जाने की आम जनता के बीच भी तीखी प्रतिक्रिया हुई।
अब इस मुद्दे पर अकाली दल ने भी केंद्र और मोदी सरकार को घेरा है। अकाली दल के अध्यक्ष और राज्य के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल ने शनिवार को कहा है कि केंद्र सरकार की ओर से कहा जा रहा है किसानों के आंदोलन में आतंकवादी, अलगाववादी आ गए हैं। उन्होंने पूछा है कि फिर सरकार उन्हें बातचीत के लिए क्यों बुला रही है।
बादल ने कहा, ‘अगर सरकार की बात मान लें तो देशभक्त और न मानें तो आतंकवादी, इससे ख़राब बात और क्या हो सकती है।’ उन्होंने कहा कि हमारे लिए देश सबसे पहले है और किसान देश के लिए ही लड़ाई लड़ रहे हैं।
उन्होंने कहा कि जब सरकार किसी आंदोलन को बदनाम करने का मन बना लेती है तो फिर उसमें एजेंसियां भी सक्रिय हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि पहले यही केंद्र सरकार किसानों को देशभक्त कहती थी।
केंद्र सरकार की ओर से इस आंदोलन को हरियाणा-पंजाब का बताए जाने के सवाल पर सुखबीर ने कहा कि ये दोनों सूबे 80 फ़ीसदी अनाज पैदा करते हैं। उन्होंने कहा कि ये पूरे देश के किसानों का आंदोलन है न कि दो राज्यों का।
जबरन लागू करने की कोशिश
इससे पहले बादल ने गुरूवार को कहा था कि केंद्र सरकार इन कृषि क़ानूनों को उसी तरह थोपने की कोशिश कर रही है जिस तरह उसने नोटबंदी और जीएसटी को थोपा था। उन्होंने कहा था, ‘किसान चाहते हैं कि इन क़ानूनों को वापस लिया जाए। जब किसान इन क़ानूनों को नहीं चाहते तो सरकार इन्हें उन पर जबरन क्यों लागू कर रही है।’
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जोर-आज़माइश तेज़
पंजाब के विधानसभा चुनाव में महज सवा साल का वक़्त बचा है। बीजेपी और अकाली दल को अलग-अलग चुनाव लड़ना है। यह तय है कि कृषि क़ानूनों के कारण बीजेपी के लिए पंजाब में खड़े होना भारी पड़ जाएगा। 10 साल तक अकाली दल की बैशाखी के जरिये सरकार में रही बीजेपी मोदी लहर के दम पर पंजाब में अकेले चुनाव लड़कर सरकार बनाने के दावे कर रही थी। लेकिन हालात ऐसे बदले कि पार्टी को वहां पिछले चुनाव में अकाली दल के साथ गठबंधन में लड़ते हुए जो 3 सीटें मिली थीं, वे भी मिलनी मुश्किल हैं।
दूसरी ओर अकाली दल के सामने भी अपना वजूद बचाने की चुनौती है क्योंकि पंजाब ही उसका आधार राज्य है। पिछले चुनाव में उसे सिर्फ़ 15 सीट मिली थीं। पंजाब में किसान वोटों की अहमियत को देखते हुए ही किसान आंदोलन के मुद्दे पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भिड़ चुके हैं। कुछ दिन पहले ही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जोरदार बहस हो चुकी है।
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