संगरूर में हुए उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष सिमरनजीत सिंह मान को जीत मिली है। इस जीत के बाद कई तरह की आशंकाएं सिर उठाने लगी हैं जिस ओर कांग्रेस के सांसदों, नेताओं सहित आम लोगों ने भी चिंता जाहिर की है।
यह चिंता यूं ही जाहिर नहीं हुई है बल्कि सिमरनजीत सिंह मान के द्वारा दिए गए भाषणों, उनकी विचारधारा की वजह से ही पंजाब के हक में सोचने वाला कोई भी शख्स मान की जीत के बाद परेशान हो सकता है।
मान को खालिस्तान की चाह रखने वाले लोगों का हीरो माना जाता है और अपनी जीत के बाद ही उन्होंने अपने बयान से यह बता दिया कि उनके इरादे क्या हैं।
मान ने अपनी जीत को खालिस्तानी और अलगाववादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले के विचारों और शिक्षाओं को समर्पित किया।
सिमरनजीत सिंह मान को 1989 में संसद में प्रवेश से रोक दिया था जब वह अपनी लंबी तलवार के साथ संसद में प्रवेश की जिद पर अड़ गए थे।
संवेदनशील सूबा है पंजाब
पंजाब भारत का एक सरहदी सूबा है जिसकी 550 किलोमीटर लंबी सीमा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से लगती है। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पर यह आरोप लगता रहा है कि वह पंजाब के नौजवानों को अलग मुल्क खालिस्तान के नाम पर भड़काती है। 80 के दशक में पंजाब दहशतगर्दी का शिकार हुआ और हजारों मासूम हिंदुओं और सिखों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इसके अलावा विदेशों में बैठे खालिस्तानी आतंकी भी पंजाब के नौजवानों को भारत के खिलाफ बरगलाने और भड़काने वाले वीडियो जारी करते रहते हैं।
बीते कुछ सालों में पंजाब दहशतगर्दी को पीछे छोड़कर आगे बढ़ा है और इस वजह से सिमरनजीत सिंह मान जैसे गरम ख्याली नेता 1999 के बाद राज्य में कोई भी चुनाव नहीं जीत सके थे। 1999 में मान संगरूर की सीट से ही सांसद बने थे।
मुसीबत में मान सरकार
उधर, अपने छोटे से कार्यकाल में भगवंत मान सरकार नशे के कारण हो रही रही मौतों, पड़ोसी पाकिस्तान से आ रही नशे और हथियार बारूद की खेप, हिंदू-सिख संगठनों के बीच झड़प, पंजाब में खुफिया विभाग के दफ्तर पर हमला और सिद्धू मूसेवाला की हत्या के कारण बुरी तरह घिर गई है और विपक्षी दलों के निशाने पर है।
इसके अलावा पंजाब में जज के घर की दीवारों और हिमाचल प्रदेश की विधानसभा की दीवारों पर भी कुछ लोगों ने खालिस्तान लिख दिया था।
खालिस्तान जिंदाबाद के नारे
6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी पर स्वर्ण मंदिर में एक बार फिर खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे थे। नारेबाजी करने वालों ने हाथों में अलगाववादी खालिस्तानी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले के पोस्टर लिए थे और भिंडरावाले के समर्थन में नारे भी लगाए थे। इसके बाद उन्होंने खालिस्तान के समर्थन में एक मार्च भी निकाला था।
यह सब बातें बताती हैं कि कट्टरपंथी तत्व एक बार फिर से पंजाब के माहौल को खराब करने की कोशिश में जुटे हैं।
एक अहम बात यह है कि पंजाब जैसे बेहद संवेदनशील राज्य को चलाने के लिए जिस विशाल तजुर्बे की जरूरत है वह न तो आम आदमी पार्टी के पास है और न ही उसके किसी नेता के पास।
मूसेवाला का जिक्र
सिमरनजीत सिंह मान ने अपनी जीत के बाद पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की मौत का भी जिक्र किया और कहा कि मूसेवाला की मौत से सिख समुदाय में बेहद नाराजगी है। मूसेवाला भी जरनैल सिंह भिंडरेवाला को लेकर अपने नरम रुख के कारण चर्चित रहे थे और उनके गानों में जबरदस्त गन कल्चर हावी था।
23 साल बाद जीते चुनाव
सिमरनजीत सिंह मान की यह जीत इसलिए भी हैरान करने वाली है और पंजाब के बदलते माहौल को बताती है क्योंकि मान 1999 के बाद कोई चुनाव नहीं जीते थे और 2022 के विधानसभा चुनाव में अमरगढ़ सीट से भी चुनाव हार गए थे। लेकिन 3 महीने के अंदर ही उन्होंने 23 साल बाद उस सीट पर जीत हासिल की जिसे मुख्यमंत्री भगवंत मान 2014 और 2019 में बड़े मतों के अंतर से जीत चुके थे।
किसान आंदोलन के दौरान भी खालिस्तानी तत्वों के साथ ही सिमरनजीत सिंह मान भी सक्रिय हुए थे। मान अपने भाषणों में भारत के संविधान को ना मानने, पंजाब के साथ लगातार नाइंसाफी होने की बात कहते रहे हैं। निश्चित रूप से उनके यह विचार आईएसआई और खालिस्तानी आतंकियों के विचारों का समर्थन करते हैं।
बीते कई सालों से मिल रही लगातार हार की वजह से सिमरनजीत सिंह मान एकदम बेमतलब से हो गए थे लेकिन संगरूर में मिली उनकी जीत और बीते कुछ महीनों में पंजाब में हुए वाकये निश्चित रूप से उन लोगों को परेशान कर रहे हैं जिन्होंने एक शांत पंजाब को आतंकवाद के दंश में झुलसते, माओं की कोख सूनी होते, औरतों को विधवा होते, नौजवानों को मरते और जेल में सड़ते हुए देखा है।
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