पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक बार फिर चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ पीके पर भरोसा जताया है। अमरिंदर ने उन्हें प्रधान सलाहकार बनाते हुए कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया है। अमरिंदर ने यह क़दम अगले साल फ़रवरी में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में फतेह हासिल करने के मद्देनज़र उठाया है।
पीके ने इस बारे में एनडीटीवी से कहा कि यह ऑफ़र उनके पास पिछले साल से पेंडिंग था। पीके ने कहा कि अमरिंदर सिंह उनके परिवार के सदस्य की तरह हैं और वह उन्हें ना नहीं कह सकते थे।
2017 में मिला था फायदा
पंजाब के मुख्यमंत्री कार्यालय ने कहा है कि पीके को इसके लिए 1 रुपये मानदेय मिलेगा हालांकि कैबिनेट मंत्री को मिलने वाली तमाम सुविधाओं के वे हक़दार होंगे। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में भी पीके की सेवाएं कांग्रेस ने ली थीं और तब कांग्रेस को इसका फ़ायदा मिला था। तब कांग्रेस को 117 सीटों वाले पंजाब में 77 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2012 में यह आंकड़ा 46 था।
पीके को बताया जुमलाबाज़
पीके की नियुक्ति का अकाली दल ने विरोध किया है। अकाली दल ने कहा है कि पीके को प्रधान सलाहकार बनाना पंजाबियों के घावों पर नमक छिड़कने जैसा है। अकाली दल ने पीके को जुमलाबाज़ बताया है। पार्टी ने कहा है कि पीके के ऋण माफ़ी के जुमलों पर भरोसा करने के बाद ही 1500 किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वादा किया था कि अगर वह पंजाब में सत्ता में आएगी तो किसानों के ऋण माफ़ कर देगी।
क्यों अहम हैं पीके?
पीके इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी नाम की कंपनी के प्रमुख हैं और यह कंपनी राजनीतिक दलों की चुनाव रणनीति बनाने का काम करती है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ‘चाय पर चर्चा’ अभियान चलाने वाले प्रशांत किशोर कई दलों के लिए चुनाव रणनीति बनाने का काम कर चुके हैं।
प्रशांत ने 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी-जेडीयू गठबंधन के लिये चुनाव रणनीति बनाई थी और जीत दिलाई थी। 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिये रणनीति बनाने वाले प्रशांत किशोर का बतौर चुनावी रणनीतिकार ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है।
पीके इसके अलावा तमिलनाडु में डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन के साथ भी काम कर रहे हैं। तमिलनाडु में भी विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। कभी नीतीश कुमार के बेहद क़रीबी रहे पीके अब उनसे पूरी तरह दूर हो चुके हैं।
निकाय चुनाव में बड़ी जीत
कांग्रेस को हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में बड़ी जीत मिली थी जबकि शिरोमणि अकाली दल को करारा झटका लगा था। पंजाब में अकाली दल की बैशाखी के सहारे राजनीति करने वाली बीजेपी भी पूरी तरह साफ हो गई थी और पहली बार स्थानीय निकाय चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी का भी प्रदर्शन ख़राब रहा था। कांग्रेस ने पंजाब के 8 में से 7 नगर निगमों में जीत दर्ज की थी।
हालांकि इस बार बीजेपी और अकाली दल अलग हो चुके हैं, इसलिए अमरिंदर के सामने चुनौती ज़्यादा नहीं है। लेकिन फिर भी अमरिंदर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते।
पीके इन दिनों पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता बनर्जी के लिए रणनीति बना रहे हैं और वहां उन्होंने पूरा जोर लगाया हुआ है। बंगाल में आठ चरणों में चुनाव होने हैं।
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