लखीमपुर खीरी में चार किसानों सहित 8 लोगों की मौत हो गई। इस घटना ने उत्तर प्रदेश का राजनीतिक तापमान तो बढ़ाया ही, इस चुनावी राज्य में इस घटना का बड़ा असर होने से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
लेकिन एक और राज्य है, जहां लखीमपुर की इस घटना का सियासी असर हो सकता है। ये राज्य है पंजाब। उत्तर प्रदेश की ही तरह पंजाब में भी 5 महीने के अंदर विधानसभा चुनाव होने हैं।
पंजाब उन ग़िने-चुने राज्यों में है, जहां कांग्रेस सत्ता में है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस ने किसानों की इस लड़ाई में पूरी ताक़त से उनका साथ दिया है। लेकिन कांग्रेस को भी पंजाब में अपनी पार्टी के भीतर चल रहे झगड़ों के बीच शायद लखीमपुर की इस घटना से बड़ी उम्मीद है।
लेकिन यहां ध्यान देना होगा कि राहुल गांधी लखीमपुर जाते वक़्त पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को अपने साथ ले गए हैं। इसके पीछे भी बड़ी वजह है। किसान आंदोलन की शुरुआत पंजाब से हुई थी और इस लड़ाई में बड़ी भागीदारी सिखों की है।
लखीमपुर की इस घटना में मारे गए चारों किसान सिख ही हैं। इसलिए कांग्रेस ने शायद इस मामले में पूरी ताक़त के साथ मैदान में उतरने का फ़ैसला किया, जिससे उत्तर प्रदेश के साथ ही पंजाब में भी इसका सीधा संदेश जाए कि कांग्रेस किसानों की इस लड़ाई में उनके साथ खड़ी है।
चन्नी, सिद्धू का क़दम
यह भी याद रखना होगा कि लखीमपुर की इस घटना को लेकर चरणजीत सिंह चन्नी तुरंत केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली आ गए थे। पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने वाले नवजोत सिंह सिद्धू भी इस मामले में सड़क पर उतरे और एलान किया कि बुधवार तक प्रियंका गांधी को रिहा नहीं किया जाता है तो पंजाब कांग्रेस लखीमपुर की ओर मार्च करेगी। कांग्रेस की ओर से यह भी पंजाब में एक संदेश देने की कोशिश थी।
आम आदमी पार्टी की सक्रियता
कांग्रेस के अलावा एक और दल है, जिसने लखीमपुर की इस घटना में ख़ुद को किसानों का सबसे बड़ा हमदर्द साबित करने की कोशिश की। यह दल है आम आदमी पार्टी। आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि इस बार वह पंजाब में अपनी सरकार बना लेगी।
चूंकि लखीमपुर की घटना में मारे गए चारों किसान सिख थे, इसलिए आम आदमी पार्टी ने पंजाब से अपने विधायकों, नेताओं को लखीमपुर भेज दिया। पार्टी की कोशिश थी कि इस मामले में कांग्रेस से ज़्यादा सक्रियता दिखाकर पंजाब और उत्तर प्रदेश में यही संदेश देना है कि वह किसानों की सबसे बड़ी (कांग्रेस से ज़्यादा) ख़ैरख़्वाह है।
जहां तक बीजेपी की बात है, उसे इस घटना से उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब में भी सियासी नुक़सान होने की संभावना से क़तई इनकार नहीं किया जा सकता। पंजाब में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ है भी नहीं।
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