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कांग्रेस के द्वारा बुलाई गई अहम बैठक को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यह बैठक बीते अगस्त में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर संगठन में बदलाव का अनुरोध वाले पार्टी के 23 असंतुष्ट नेताओं के नेतृत्व के साथ जारी मतभेदों को दूर करने के लिए बुलाई गई है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक़ इन सभी नेताओं को बैठक में शामिल होने का औपचारिक न्यौता भेजा गया है। सभी नेता बैठक में शामिल होंगे या नहीं, ये अभी तक साफ़ नहीं है।
इस बैठक पर कांग्रेस में सबकी नज़र है। राजनीतिक विश्लेषक भी यह जानने के इच्छुक हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी उन्हें चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं को नेतृत्व के सवाल पर उनके एतराज़ और उनकी मांग पर क्या जवाब देती हैं। ये देखना भी दिलचस्प होगा कि सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले ये नेता बैठक में सोनिया, राहुल और प्रियंका का सामना कैसे करेंगे। हालांकि कांग्रेस ने इन खबरों का खंडन किया है कि ये बैठक नाराज़ नेताओं को मनाने के लिए बुलाई गई है।
कांग्रेस का दावा है कि इस बैठक में जनवरी-फरवरी में होने वाले पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के अलावा किसान आंदोलन पर पार्टी की रणनीति पर चर्चा होगी और बैठक का यही आधिकारिक एजेंडा है।
बैठक का आधिकारिक एजेंडा चाहे जो हो, इसमें चिट्ठी में की गई मांग और उस पर दस्तख़त करने वाले 23 नेताओं के साथ मतभेदों पर निश्चित तौर पर चर्चा होगी। हालांकि पार्टी के सूत्रों ने यह भी दावा किया है कि बैठक में चिट्ठी पर दस्तख़त करने वाले सभी 23 नेता शामिल नहीं होंगे बल्कि उनमें से पांच-छह ही शरीक होंगे। बैठक में इनके अलावा सभी महासचिवों, प्रभारियों और कई वरिष्ठ नेताओं को भी बुलाया गया है। लिहाज़ा इस बैठक के पिछली कार्यसमिति की बैठक की तरह हंगामेदार रहने की पूरी संभावना है।
बैठक के हंगामेदार रहने की संभावना इसलिए भी है क्योंकि कांग्रेस के चाणक्य कहे जाने वाले अहमद पटेल की आकस्मिक मौत के बाद पार्टी की यह पहली बैठक है जिसमें अहम मुद्दों पर चर्चा होनी है।
सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के कुछ साल बाद से ही उनके राजनीतिक सचिव के रूप में हर बैठक में साए की तरह साथ रहने वाले अहमद पटेल इस बैठक में नहीं होंगे। राजनीतिक सचिव के तौर पर अहमद पटेल सोनिया गांधी की आंख, कान और नाक हुआ करते थे। उनकी ग़ैर मौजूदगी न सिर्फ़ सोनिया गांधी को खलेगी बल्कि उन्हें भी खल रही है जो पार्टी नेतृत्व के ख़िलाफ़ बग़ावत का झंडा बुलंद किए हुए हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संभवतः पहली बार पार्टी की किसी अहम बैठक में अपने सबसे भरोसेमंद सिपहसालार की ग़ैर मौजूदगी में पार्टी नेताओं से मुख़ातिब होंगी। इस स्थिति में असंतुष्टों का सामना करना सोनिया गांधी के लिए भी बड़ी चुनौती होगी। बड़ी मुश्किल से वो असंतुष्टों से मिलने के लिए राज़ी हुई हैं।
पार्टी में नेतृत्व और असंतुष्टों को बातचीत की मेज़ पर लाने में मैनेजरों के भी पसीने छूट गए हैं। 23 नेताओं के सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने बाद से ही उनके और सोनिया गांधी के बीच लगभग संवादहीनता की स्थिति बनी हुई थी।
इस बीच असंतुष्ट नेताओं ने पार्टी नेतृत्व के ख़िलाफ़ मीडिया में जमकर भड़ास निकाली है। कुछ ने कलम चलाई तो कुछ ने ज़ुबान। ऐसे में अहमद पटेल के बग़ैर इन नेताओं को साधना सोनिया गांधी के लिए आसान नहीं होगा।
कांग्रेस की इस बैठक में सोनिया गांधी का साथ देने के लिए यूं तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत पार्टी के कई भरोसेमंद वरिष्ठ नेता शामिल होंगे। लेकिन इनमें एक भी ऐसा नहीं है तो अहमद पटेल की कमी को पूरा कर सके। प्रियंका गांधी जहां पार्टी की महासचिव होने के नाते बैठक में शामिल होंगी, वहीं राहुल गांधी पार्टी का पूर्व अध्यक्ष और कार्यसमिति में स्थायी आमंत्रित सदस्य होने के नाते बैठक में शामिल होंगे।
एजेंडे के मुताबिक़, बैठक में किसान आंदोलन समेत कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव पर चर्चा होने की संभावना है। अध्यक्ष के चुनाल से जुड़े मुद्दे पर ही 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी, लिहाज़ा चिट्ठी में नेतृत्व से की गई मांग पर खुलकर चर्चा होना लाज़िमी है।
इस लिहाज़ से देखें तो गांधी परिवार की पार्टी के असंतुष्ट नेताओं के साथ ये बैठक काफी अहम है। इस बैठक को पार्टी के भीतर बने गतिरोध को सुलझाने की दिशा में एक बड़ा क़दम माना जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक़, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस बैठक के आयोजन में अहम भूमिका निभाई है। कमलनाथ ख़ुद भी असंतुष्ट नेताओं के पत्र लिखने के कारणों का समर्थन कर रहे हैं। ग़ौरतलब है कि 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में यह कहकर नेतृत्व बदलने की मांग की थी कि पार्टी की बागडोर ऐसे हाथों में सौंपी जाए जो पूरे समय पार्टी के लिए सक्रिय रह कर काम करे।
इस लेटर बम के बाद पार्टी में काफ़ी बवाल मचा था और गांधी परिवार ने चिट्ठी लिखने वाले तमाम नेताओं से दूरी बना ली थी। चिट्ठी लिखने वाले नेताओं की पार्टी की कई समितियों के गठन में अनदेखी की गई। यह सिलसिला अभी भी जारी है।
लेटर बम के तुरंत बाद कुछ असंतुष्ट नेता जैसे- ग़ुलाम नबी आज़ाद को सोनिया गांधी से मिलने समय नहीं दिया गया था। आज़ाद और पार्टी महासचिव मुकुल वासनिक को चिट्ठी पर दस्तख़त करने के चलते वीडियो कॉन्फ्रेन्सिंग के जरिये हुई कांग्रेस की बैठक में गांधी परिवार की मौजूदगी में नाराज़गी का सामना करना पड़ा था।
तभी से गांधी परिवार और असंतुष्ट नेताओं के बीच संवादहीनता की स्थिति बनी हुई है। गांधी परिवार की तरफ से असंतुष्ट नेताओं के साथ बातचीत की कोई कोशिश नहीं की गई। असंतुष्टों ने भी पार्टी नेतृत्व पर हमला करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ा।
हाल ही में, बिहार चुनाव में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद असंतोष की आग फिर भड़की। चिट्ठी लिखने वालों में शामिल रहे कपिल सिब्बल ने अपने गुस्से को यह कहते हुए सार्वजनिक रूप से अपनी नाराज़गी जताई कि "आत्मनिरीक्षण का समय समाप्त हो गया है।"
सिब्बल के बाद यूपीए सरकार में वित्त और गृहमंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने भी "व्यापक समीक्षा" की बात कही और सुझाव दिया था कि पार्टी को अपने मूल को मजबूत करने की आवश्यकता है। कई और नेताओं ने भी इस बात पर हैरानी जताई के एक के बाद एक चुनाव हारने के बावजूद कांग्रेस नेतृत्व अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण मसले पर कोई फैसला क्यों नहीं ले रहा है।
कई पार्टी नेताओं ने दबी ज़ुबान में गांधी परिवार के बाहर किसी को पार्टी की कमान सौंपने की बात कही। लेकिन सोनिया गांधी की तरफ़ से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। इससे यह संदेश भी गया कि उन्हें पार्टी के भविष्य की कोई चिंता नहीं है।
बहरहाल, अब नए साल में पार्टी में नया अध्यक्ष चुनने की गर्माहट के संकेत उभरे हैं। कमलनाथ की कोशिशों से गांधी परिवार और असंतुष्ट नेताओं के बीच जमी बर्फ़ पिघलती दिख रही है।
कमलनाथ आगे बढ़कर असंतुष्टों से गांधी परिवार की बात करवाकर पार्टी में अहमद पटेल की जगह भरने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें उन्हें कितनी कामयाबी मिलेगी यह तो बैठक के नतीजे बताएंगे। लेकिन पूर्व महासचिव जनार्दन द्विवेदी के मुताबिक़ कांग्रेस के पास दूसरा अहमद पटेल नहीं है। यही वजह है कि कांग्रेस की इस अहम बैठक के वक़्त अहमद पटेल की अहमियत का अहसास हो रहा है और शिद्दत से उनकी कमी भी महसूस हो रही है।
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