बात जनवरी 2004 की है। तब मैं ज़ी न्यूज़ में हुआ करता था। उस दिन ऑफ़िस जाने को तैयार था। घर से निकलने ही वाला था कि फ़ोन की घंटी बजी। प्राइवेट नंबर से फ़ोन था। मैं समझ गया किसका फ़ोन है। फ़ोन उठाया। सलाम किया। उधर अहमद भाई थे। दुआ सलाम के बाद बोले, ‘आपके लिए एक जानकारी है।’ ख़बर कुछ यूँ बताई, ‘आज मैडम (सोनिया गाँधी) ने शरद पवार जी को फ़ोन किया है। उनसे कहा है कि हम लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन के बारे में आपसे बात करना चाहते हैं। पवार जी ने मैडम का स्वागत किया है और उन्हें चाय पर अपने घर बुलाया है। परसों शाम 5:30 बजे मैडम पवार साहब के यहाँ चाय पीने जाएँगी।’
यह साल की सबसे बड़ी राजनीतिक ख़बर थी। जिस सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार ने 1999 में पार्टी का बँटवारा किया था। पी ए संगमा और तारिक़ अनवर के साथ कांग्रेस छोड़कर अलग नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी बनाई। पूरे 5 साल सोनिया गाँधी के विदेशी मूल के मुद्दे को उठाते रहे उन्हीं सोनिया गाँधी ने पवार को फ़ोन करके उनके साथ गठबंधन की इच्छा जताकर बड़े दिल का परिचय दिया था। यह राजनीति में सचमुच सोनिया गाँधी का मास्टर स्ट्रोक था या यूँ कहें कि अहमद पटेल की राजनीतिक सूझबूझ का कमाल था। उन्होंने उस समय भारतीय राजनीति के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव को एक कर दिया था।
इस ख़बर को ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में चलाने के बाद मैं ऑफ़िस पहुँचा और उस दिन दूसरे चैनलों पर कई घंटे तक इस ख़बर की पुष्टि नहीं हो पाई थी। कांग्रेस कवर करने वाले पत्रकारों को इस ख़बर पर यक़ीन नहीं हुआ। उन्होंने मेरी ख़बर को ग़लत क़रार दिया। कइयों ने मुझसे इस ख़बर का सोर्स तक पूछा। लेकिन उस वक़्त मैंने किसी को इस ख़बर का सोर्स नहीं बताया। सिर्फ़ यह कहा कि ख़बर एकदम पक्की है।
2004 के लोकसभा चुनाव से पहले यह सबसे बड़ी राजनीतिक ख़बर थी। इस ख़बर के बाद यह लगने लगा था कि शायद सोनिया गाँधी एनडीए के ख़िलाफ़ एक मज़बूत गठबंधन बनाकर अटल बिहारी वाजपेई को सत्ता से हटा सकती हैं।
अहमद पटेल ने 2004 की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण राजनीतिक ख़बर ख़ुद मुझे फ़ोन करके क्यों बताई, इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है। दरअसल उन दिनों हम ख़बरों को लेकर बहुत ज़्यादा उत्साहित रहा करते थे। टीवी चैनलों में गला काट प्रतियोगिता शुरू हो चुकी थी। हर पत्रकार एक ब्रेकिंग न्यूज़ के चक्कर में रहता था ताकि उसका भी नाम हो और उसके चैनल का भी। हम पर भी इसी तरह ख़बरें जुटाने का जुनून सवार रहता था।
बात अगस्त 2003 की है। एक दिन मैंने सपना देखा। रविवार का दिन है और मैं अकेला कैमरा और माइक लेकर दस जनपथ पर खड़ा हूँ। थोड़ी देर बाद क्या देखता हूँ कि अंदर से शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल आए और गाड़ी में बैठ कर बाहर निकल रहे हैं। मैंने उनको कैमरे में रिकॉर्ड किया। उनके थोड़ी देर बाद अहमद पटेल अपनी गाड़ी में बैठ कर आए लेकिन बिना कुछ बताए चले गए। इतना साफ़ हो चुका था कि शरद पवार सोनिया गाँधी से मिले हैं। यह ख़बर सिर्फ़ मेरे पास थी। इसका वीडियो भी सिर्फ़ मेरे पास था। लिहाज़ा मैंने ब्रेकिंग न्यूज़ चला दी। इसके बाद मुझे लगा क्या मेरा सपना सच होगा?
इस घटना के बाद जब भी अहमद पटेल से कहीं मुलाक़ात होती मैं शरारतन उनसे यह ज़रूर पूछता कि क्या शरद पवार साहब से गठबंधन के बारे में कोई बात हुई है आपकी। दो तीन बार तो उन्होंने इस बात को मज़ाक़ में लिया। लेकिन दिसंबर 2003 में जब मैं उनसे मिलने एक बार उनके घर गया तो मैंने फिर उनसे यही सवाल किया। इस पर वो बोले,
‘क्या बात करते हैं? आपने देखा नहीं पवार साहब दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान मैडम के विदेशी मूल के मुद्दे को कितना ज़ोर-शोर से उठाकर गए हैं। क्या कुछ नहीं कहा उन्होंने। इतना सब होने के बाद भी आपको लगता है कि उनसे गठबंधन की बात होगी?’
इस पर मैंने पूरा विश्वास जताते हुए कहा कि उनके साथ गठबंधन होगा और आप ही कराएँगे।
इस पर वह वह थोड़ा गंभीर हुए। पूछने लगे कि आख़िर आपको ऐसा क्यों लगता है और क्यों मुझसे बार-बार पूछते हो।
मैंने उन्हें तीन वजहें बताईं। पहली- आपकी और पवार साहब की गहरी दोस्ती है। इसी दोस्ती की वजह से 1999 में महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन की सरकार बनी। दूसरी- पवार साहब ने जब भी कांग्रेस छोड़ी है 5 साल से ज़्यादा कांग्रेस से बाहर नहीं रहे, लौटकर कांग्रेस में ही आए हैं। अब 5 साल पूरे होने को हैं अगर कांग्रेस में वापस नहीं लौटेंगे तो कम से कम गठबंधन तो करेंगे। तीसरी- मैंने पाँच महीने पहले सपना देखा था कि पवार साहब, प्रफुल्ल पटेल और आपके साथ सोनिया जी से दस जनपथ पर जाकर मिले हैं। और मेरे सपने अक्सर सच हो जाते हैं।
इस पर वो ठहाका मार के हँसे और कहने लगे क्या सपने में भी ख़बरें देखते हो। मैंने कहा- सर, ख़बरों में ही जीना-मरना है। यही रोज़ी-रोटी है। यही सब कुछ है। इसका सपना नहीं देखेंगे तो किसका सपना देखेंगे। उसके बाद मैंने कहा कि सर गठबंधन तो एक दिन होकर रहेगा। आप ही कराएँगे। बस, आपसे यही गुज़ारिश है कि जब भी गठबंधन की बात हो तो इसकी ख़बर मुझे सबसे पहले चाहिए। अपने अंदाज़ में मुस्कुराए और बोले अगर ऐसा होगा तो सबसे सबसे पहले आप ही को बताऊँगा। यह वादा है। बमुश्किलन इस घटना को महीना भर बीता होगा कि अहमद भाई ने अपना वादा निभा दिया।
यह वह एकमात्र ख़बर थी जो अहमद भाई ने ख़ुद से फ़ोन करके दी। शायद इसलिए कि उन्होंने मुझसे वादा किया था। वादे के ऐसे पक्के थे अहमद भाई। जो कह देते थे वह कर के दिखाते थे। इस घटना के बाद मैं उनका कायल हो गया था क्योंकि इससे पहले मैंने कभी नहीं देखा कि कोई नेता किसी पत्रकार से किए गए वादे को इतनी गंभीरता से लेता है।
हालाँकि पिछले 20 साल में उनसे बातचीत करके उनसे कांग्रेस की कई बड़ी ख़बरें हमने निकालीं। कुछ का उन्होंने इशारा किया और हमने उसे लपक के ख़बर चलाई। कई बार ख़बर हमारे पास थी उसकी पुष्टि उन्होंने की। लेकिन यह ख़बर मेरी पत्रकारिता जीवन की भी एक बड़ी और महत्वपूर्ण ख़बर थी। इसके बाद मेरे अपने संस्थान और कांग्रेस बीट पर मेरे बारे में लोगों की राय बन गई थी कि कांग्रेस की कोई ख़बर इससे बचकर नहीं जा सकती।
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