आज़ादी के अमृत महोत्सव पर ‘हर घर तिरंगा’ की पहल ऐतिहासिक और अनूठी है। इस मुहिम को शुरू कर नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर यह अहसास कराया है कि फ़ैसले करने में वे परंपरागत दक्षिणपंथी सोच से कई बार आगे निकल आते हैं। आरएसएस से जुड़े रहे नरेंद्र मोदी भी जानते हैं कि संघ के प्रांगण में तिरंगा फहराने की मनाही थी और आजादी के 55 साल बाद ही वर्ष 2002 में संघ के नागपुर कार्यालय में तिरंगा फहराया जाना शुरू हुआ।
वर्ष 2002 इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी साल अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने फ्लैग कोड में संशोधन किया था जिसके तहत हर नागरिक को पूरे सम्मान के साथ राष्ट्रीय तिरंगा फहराने का अधिकार दिया गया। यह अधिकार कांग्रेस नेता और प्रसिद्ध उद्योगपति नवीन जिन्दल के उस संघर्ष का नतीजा था जिसके तहत उन्होंने 7 साल तक व्यक्तिगत रूप से तिरंगा फहराने की लड़ाई लड़ी थी।
जब संघ कार्यालय में तिरंगा फहराने का ‘जुर्म’ हुआ
अमृत महोत्सव के दौरान जब ‘हर घर तिरंगा’ का अभियान चल रहा है तो उन तीन युवाओं को भी याद करना ज़रूरी है जिन्होंने 2001 में जबरदस्ती आरएसएस के प्रांगण में तिरंगा फहराया और जेल की यात्रा की। 2013 में ये तीनों युवक बाबा मेंढे, रमेश कलम्बे और दिलीप चटवानी बाइज्जत बरी हुए। जब-जब बीजेपी की ओर से मदरसे में जबरन झंडा फहराने, तिरंगा यात्रा निकालने और तिरंगे को देशभक्ति से जोड़ने की कोशिश की जाती है, तब-तब इन तिरंगे के लिए तीन युवकों का संघर्ष यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा हो जाता है।
यह हर्ष की बात है कि आजादी के 75 साल बाद अब इस देश में तिरंगा फहराने को लेकर सत्ता और विपक्ष एकमत दिखते हैं। लेकिन, क्या वे शक्तियां कमजोर पड़ी हैं जो तिरंगे को बदलने पर आमादा हैं? चाहे नारा ‘लाल किले पर लाल निशान मांग रहा है हिन्दुस्तान’ हो या फिर ‘हिन्दू राज आएगा घर-घर भगवा लहराएगा’ जैसे नारे रहे हों- ये तिरंगा के लिए ही चुनौती रहे थे। देश में कम्युनिस्ट कमजोर हो चुके हैं लेकिन हिन्दू राज की घोषणा करते रहने वाले आज की सियासत में सबसे ज्यादा मजबूत हैं। कर्नाटक में बीजेपी नेता ईश्वरप्पा का हालिया बयान उल्लेखनीय है जिसमें उन्होंने कहा था कि एक दिन आएगा जब आरएसएस का भगवा झंडा राष्ट्रध्वज बन जाएगा।
आजादी की लड़ाई का संघर्ष बताता है तिरंगा
वर्तमान में जो तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्य है उसे तैयार करने में हमारे स्वतंत्रता आंदोलन और उससे जुड़े योद्धाओं की सोच का महती योगदान है। पिंगली वेंकैया और उनके दो सहयोगियों एसबी बोमान एवं उमर सोमानी ने मिलकर राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप तैयार किया था।
पहले इसमें हरे और लाल रंग का इस्तेमाल हुआ लेकिन विचार-विमर्श के बाद इसे केसरिया और हरा कर दिया गया। अशोक चक्र का सुझाव खुद गांधीजी ने दिया था।
पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त 1906 को तैयार हुआ जिसमें हरे, पीले और लाल रंग की पट्टियाँ थीं। हरी पट्टी में आठ कमल के फूल, लाल पट्टी में चांद और सूरज के साथ पीली पट्टी में वंदे मातरम लिखा था। दूसरे राष्ट्रीय ध्वज को 1907 में मैडम भीकाजी कामा ने पेरिस में फहराया था। पहले से फर्क यह था कि ऊपरी पट्टी का रंग केसरिया हो गया और कमल के बजाय सात तारे सप्तऋषि के प्रतीक बनकर आ गए। नीचे की पट्टी का रंग गहरा हरा था जिसमें सूरज और चांद थे।
1917 में होमरूल आंदोलन के दौरान तीसरा राष्ट्रीय ध्वज आया। इसमें पांच लाल और चार हरी क्षैतिज पट्टियां थीं। सप्तऋषि के सात सितारे और बाएं व ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक भी था। एक कोने में सफेद अर्ध चंद्र और सितारा भी था। 1921 में कांग्रेस के विजयवाड़ा सम्मेलन में चौथा राष्ट्रीय ध्वज आया। इसमें सफेद, लाल और हरे रंग का इस्तेमाल हुआ। 1931 में केसरिया, सफेद और हरे रंग की पट्टियों वाले ध्वज के बीचों-बीच गांधीजी का चरखा था। 15 अगस्त 1947 में इसी तिरंगे में चरखे की जगह अशोक चक्र का इस्तेमाल हुआ। इस झंडे को 22 जुलाई को संविधान सभा ने मंजूरी दी थी।
तिरंगे पर दूसरे ध्वज को नहीं मिली वरीयता
कर्नाटक के हुबली में तिरंगा फहराने से जुड़े विवाद के कारण उमा भारती को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था।
उन पर तिरंगा यात्रा के दौरान हुबली में सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के आरोप लगे थे और गैर जमानती वारंट जारी हुआ था। हालाँकि बाद में वे इस मामले में ससम्मान बरी हो गयीं। इसके बावजूद उनका जो राजनीतिक और व्यक्तिगत नुक़सान हुआ उसकी कभी भरपाई नहीं हो सकी।
तिरंगे की विरासत पर दावे की स्पर्धा
आजादी के अमृत महोत्सव पर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का सम्मान और उसे हर घर फहराने की ज़रूरत वक्त का तकाजा है। यह एक अवसर है जब राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और दूसरे किस्म की विविधताओं के बावजूद हम राष्ट्रीय झंडे के साथ एकजुट हों। इसमें हम अपनी व्यक्तिगत और संस्थागत सोच को परे रखें। तिरंगा हमारी शान है, हर भारतीय का अरमान है। जब आरएसएस तक तिरंगा फहराने को और ‘हर घर तिरंगा’ उत्सव अपनाने को तैयार है तो तिरंगा की झंडाबरदार रही कांग्रेस को तो आगे बढ़कर इस पहल का स्वागत करना चाहिए। जब संघ तक है तैयार तो तिरंगे पर मोदी से क्यों कांग्रेस या विपक्ष करे तकरार?
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