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आर्थिक मंदी में उम्मीद फ़सलों से थी, लॉकडाउन से किसान भी हो रहे हैं बर्बाद

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए देशबंदी की घोषणा कर दी है। औद्योगिक गतिविधियाँ ठप हैं। ग्रामीण इलाक़ों से शहरों में दिहाड़ी मज़दूरी करने वाले अपने गाँवों की ओर भाग रहे हैं। छोटे उद्योग चलाने वालों ने अपने दिहाड़ी कर्मचारियों की छुट्टी कर दी है। वहीं गाँवों में ख़ासकर वाणिज्यिक कृषि करने वालों के ऊपर भी मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है।

इस सीजन में गेहूँ, प्याज, लीची जैसी तमाम फ़सलें और फल पककर तैयार होते हैं। महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर कोविड-19 के मरीज सामने आ रहे हैं और राज्य में व्यापक बंदी है। महाराष्ट्र प्याज का सबसे बड़ा उत्पादक है और नासिक ज़िले की लासलगाँव मंडी एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी है। ज़िले में कोरोना का मरीज पाए जाने के बाद लासलगाँव मंडी बंद है। वहाँ पर सिर्फ़ विनचुर मंडी खुली हुई है और वहाँ आवक सामान्य दिनों की तुलना में दोगुनी हो गई है।

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इस सीजन का प्याज बहुत तेज़ी से ख़राब होता है, जिससे किसान जल्द से जल्द उसे बेच देना चाहते हैं। पिछले सोमवार को मंडी में प्याज की क़ीमत 3 रुपये प्रति किलो हो गई, जबकि किसान की उत्पादन लागत 6 रुपये से 8 रुपये प्रति किलो होती है। इतना ही नहीं, विदेश में भी प्याज की माँग ठप हो गई है क्योंकि जिन देशों में भारत से प्याज का निर्यात होता है, वो भी कोरोना के शिकार हैं। फ़सल निपटाने की कवायद का फ़ायदा स्टॉकिस्ट, गोदाम मालिक और बड़े खुदरा चेन वाले उठा रहे हैं, जिनके पास भंडार करने की सुविधा है। छोटे व मझोले किसानों के पास न तो अपना गोदाम होता है, न उनके पास इतने पैसे होते हैं कि वे सार्वजनिक गोदाम में फ़सल रखने का जोखिम उठा सकें। 

इसी सीजन में गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों मसूर आदि की फ़सल तैयार होती है। इन फ़सलों को किसान अपने घर में रख सकते हैं और इनके लिए कोल्ड स्टोरेज की ज़रूरत नहीं होती। गेहूँ की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसकी कटाई बड़े पैमाने पर हार्वेस्टर से होती है। देशबंदी की वजह से आवाजाही बंद है, जिससे हार्वेस्टर भी विभिन्न ज़िलों में कम ही पहुँच रहे हैं। हालाँकि कुछ सरकारों ने हार्वेस्टर की आवाजाही को देशबंदी से मुक्त रखा है, लेकिन कोरोना और पुलिस का खौफ हार्वेस्टर मालिकों और कर्मचारियों पर भरपूर है। गेहूँ के अलावा अन्य फ़सलों की कटाई और मड़ाई पूरी तरह से श्रमिकों पर निर्भर है।

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इसी सीजन में मूँग की बुआई होती है और उड़द की बुआई क़रीब क़रीब पूरी हो चुकी है। उड़द और मूँग की फ़सल में पत्ती खाने वाले कीटों की रोकथाम की कवायद करनी होती है। सूरजमुखी में हरे फुदके पत्तियों से रस चूसकर हानि पहुँचाने लगते हैं और इस समस्या से निपटने के लिए किसानों को फास्फेमिडान का छिड़काव करना होता है। भिंडी और लोबिया की फ़सल में भी पत्ती खाने वाले कीट से बचाव के लिए क्यूनालफास का छिड़काव करना होता है। 

प्याज व लहसुन की खुदाई के साथ इस महीने में सूरन, अदरक और हल्दी की बुआई भी होती है। वहीं फलों की खेती में मुख्य काम आम के गुम्मा रोग से ग्रस्त पुष्प मंजरियों को काटकर नष्ट किया जाता है और फलों को गिरने से बचाने के लिए एल्फा नेफ्थलीन एसिटिक एसिड का छिड़काव किया जाता है। लीची के बागों में सिंचाई के साथ फ्रूट बोरर की रोकथाम के लिए डाईक्लोरोवास का छिड़काव करना होता है। गर्मी बढ़ने के साथ आम, अमरूद, नींबू, अंगूर, बेर और पपीते की फ़सल की सिंचाई शुरू हो जाती है।

इसमें ज़्यादातर नकदी फ़सलें श्रम आधारित हैं। दिलचस्प यह है कि जहाँ भी बड़े किसान इन नकदी फ़सलों, फलों और सब्जियों की खेती करते हैं, वहाँ दूर-दराज के इलाक़ों व राज्यों के श्रमिक आते हैं और किसानों के साथ काम में हाथ बंटाते हैं।

कोरोना के कारण देशव्यापी बंदी की वजह से ज़्यादातर मज़दूर भाग चुके हैं और अब वह हफ्तों तक पैदल चलकर अपने पैतृक गाँव पहुँच चुके हैं।

अगर कृषि क्षेत्र में फ़सलों की समस्याओं का तत्काल समाधान न किया जाए, तैयार फ़सलों की कटाई न की जाए और उन्हें मंडी तक न पहुँचाया जाए तो फ़सलें ख़राब हो जाएँगी। इस हिसाब से देखें तो 21 दिन की देशबंदी से किसानों के ऊपर बड़ी मार पड़ने वाली है।

तैयार फ़सलों की कटाई और मड़ाई से लेकर फलों, सब्जियों की सुरक्षा के लिए उन पर दवाओं के छिड़काव आदि का काम रुक गया है। 

पश्चिम बंगाल सरकार ने कोरोना वायरस फैलने के डर से चाय के बागान बंद कर रखे हैं। केंद्र सरकार ने 50 प्रतिशत मज़दूरों के साथ चाय बागान में काम शुरू करने की अनुमति दे दी, लेकिन राज्य सरकार ने अनुमति देने से इनकार कर दिया है। राज्य सरकार का कहना है कि पश्चिम बंगाल का उत्तरी हिस्सा रणनीतिक है और यहाँ बांग्लादेश, नेपाल, भूटान की अंतरराष्ट्रीय सीमाएँ लगती हैं और यहीं से होकर पूर्वोत्तर राज्यों व सिक्कम में जाया जाता है। राज्य सरकार का कहना है कि ऐसी स्थिति में इस इलाक़े में लॉकडाउन में ढील देना कोरोना फैलने के हिसाब से घातक हो सकता है।

इस हिसाब से देखें तो कोरोना के कारण हुई बंदी किसानों के लिए बड़ी आफत लेकर आई है। पहले से ही मंद अर्थव्यवस्था के बीच सरकार और कंपनियाँ उम्मीद कर रही थीं कि इस बार फ़सल अच्छी होगी और ग्रामीण इलाक़ों में एफ़एमसीजी, वाहन उद्योगों का क़ारोबार तेज़ होगा। लेकिन अभी जो हालात हैं, उसमें किसानों की भी दुर्दशा हो रही है। किसानों को खेती में लगाई गई अपनी पूँजी गँवाने का डर सता रहा है। अगर देशबंदी लंबी खिंचती है तो नकदी फ़सलों की खेती करने वाले किसान बड़े पैमाने पर भारी क़र्ज़ में डूब सकते हैं।
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प्रीति सिंह
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