‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ फ़िल्म को व्यापक रूप से देखा और दिखाया जाना चाहिए। इसका देखा जाना कोविड के टीके की तरह अनिवार्य भी किया जा सकता है। शुरुआत उन लोगों से की जा सकती है जो 1989-90 में भाजपा-समर्थित वीपी सिंह सरकार को सत्ता में लाने के लिए वोट देने के बाद से इस समय पचास की उम्र को पार कर गए हैं।
टीके जैसा ज़रूरी कर दिया जाए ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ देखना!
- विचार
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- 21 Mar, 2022

‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ को इस नज़रिए से भी पढ़ा जा सकता है कि जो काम पच्चीस करोड़ की आबादी वाले एक प्रदेश में महीनों के यथा सम्भव प्रयासों के बाद भी मुमकिन नहीं हो पाया उसे सिर्फ़ तीन घंटे की एक फ़िल्म ने शांतिपूर्ण तरीक़े से कुछ ही दिनों में पूरे देश में मुमकिन कर दिखाया।
देश की अस्सी करोड़ आबादी को बाँटे जा रहे मुफ़्त के अनाज के साथ फ़िल्म का टिकट भी फ़्री दिया जा सकता है। चुनावी रैलियों के लिए जुटाए जाने वाली श्रोताओं भीड़ की तरह ही दर्शकों को भी थिएटरों तक लाने-ले जाने की पार्टी द्वारा व्यवस्था की जा सकती है। (फ़िल्म के अंतिम भाग में नायक कृष्णा भी चुनावी रैलियों के नेताओं की तरह ही कश्मीर के गौरवशाली हिंदू अतीत पर भाषण करते हुए दिखाया गया है।)