‘मिल्खा सिंह सौभाग्यशाली था जो पंजाब में पैदा हुआ, चंबल के बीहड़ों में जन्म लेता तो एनकाउंटर में मारा जाता। पानसिंह तोमर दुर्भाग्यशाली था जो चम्बल में पैदा हुआ, पंजाब में जन्म लेता तो अर्जुन पुरस्कारों से सम्मानित होता और फ़्लाईंग राजपूत कहलाता।’
मिशन चम्बल घाटी -3: काश! पान सिंह तोमर चंबल की जगह पंजाब में पैदा होता
- विचार
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- 12 Jun, 2020

आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद चम्बल नदी और उसके बीहड़ चम्बल सेंड, क्षेत्र के पिछड़ेपन और कंधे पर बंदूक लटकाये 'बाग़ियों' के लिए याद किये जाते रहे हैं। सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, वायदे उसके चाहे जितने रंगीन और लुभावने हों, चम्बल घाटी का न तो पिछड़ापन दूर हुआ है, न यहाँ विकास की कोई धारा बही है और न कभी डाकू समस्या से इसे निजात मिली है। अनिल शुक्ल ने चम्बल के इन बीहड़ों का व्यापक अध्ययन किया है और इस इलाक़े से जुड़े रहे वरिष्ठ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञों, और पूर्व डाकुओं से लम्बी बातचीत की है। चम्बल के इस समूचे परिदृश्य को हम सिलसिलेवार शृंखला में आपके समक्ष पेश कर रहे हैं।
भोपाल के अपने कार्यालय में बैठे मध्य प्रदेश के हैंडलूम कमिशनर राजीव शर्मा जिस समय यह वक्तव्य दे रहे थे, उनके चेहरे पर विशाद की गहरी रेखाएँ उभर रही थीं। सन 1965 में, अपने जन्म से लेकर पूरी पढ़ाई के दौरान श्री शर्मा भिंड (चंबल प्रभाग) के बाशिंदे बने रहे लेकिन 1988 में आईएएस में नियुक्ति के बाद उन्होंने कभी चंबल प्रभाग में अपनी नियुक्ति के किसी भी प्रस्ताव को फ़लीभूत न होने दिया। कारण पूछने पर वह बड़ी सादगी से जवाब देते हैं, ‘इंदौर, उज्जैन और ग्वालियर जहाँ अभी भी राजाओं का राज है, वहाँ चाटुकारिता का ज़ोर है और एक अच्छा अधिकारी वहाँ सर्वाइव नहीं कर सकता।’
चंबल का पूरा प्रखंड बीहड़ों से अटा पड़ा है। वैसे तो यह मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान की धरती में बिखरा हुआ है लेकिन इसकी असली जड़ें बिखरी हैं मध्य प्रदेश की धरती पर। बालू और मिट्टी के इन मिले-जुले टीलों और ख़ारों ने क्षेत्र के पूरे विकास को जैसे थाम रखा है। इन्हीं ख़ारों और टीलों के बीच से जन्म लेता है भय, अविश्वास, प्रतिशोध, बेरोज़गारी, आर्थिक विपन्नता और डाकू। इन बीहड़ों का प्रसार बढ़ रहा है, निरंतर बढ़ रहा है। आज़ादी से ठीक पहले हुए भूमि सर्वे (सन 1944) में इनका विस्तार 2.8 लाख हेक्टेयर मापा गया था। आज यह 7 लाख हेक्टेयर में फैल गए हैं। यह तेज़ी के साथ अपने आस-पास के मैदानों को चाटता जा रहा है, उन्हें बीहड़ों में तब्दील करता जा रहा है।