101 मंदिर
आगरा से 70 किमी दूर है बटेश्वर। बटेश्वर में यमुना सुराही की गर्दन की मानिंद 2 मील का चक्कर लगाकर वापस अपने प्रारंभिक स्थल पर लौट आती है और इस तरह अनोखे प्राकृतिक दृश्य की संरचना करती है। इसके किनारे-किनारे मंदिर की कतार है। आज इनकी संख्या 101 है। हर युग में ये सौ से ऊपर ही रहे हैं। लेकिन दीर्घ आयु, फ़ंड की कमी और देख-रेख में लगातार होने वाली इनकी उपेक्षा के चलते अब इनकी दीवारें दरक रही हैं, घाट धंस रहे हैं।कृष्ण के पिता की बारात
मिथकीय विवरणों में बटेश्वर को श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के राज्य की राजधानी बताया गया है। देवकी के साथ होने वाले विवाह के दौरान वासुदेव की बारात के बटेश्वर से निकाले जाने के उल्लेख मिलते हैं। हिन्दू देवता शिव को बटेश्वर (बट-अर्थात बरगद का ईश्वर) भी कहा जाता है। यूं तो यहाँ प्राचीन काल से शिव मंदिरों की स्थापना का सन्दर्भ मिलता है, लेकिन आज का सबसे प्रमुख मंदिर मध्यकाल (सन 1646) में भदावर नरेश द्वारा बनवाया गया बटेश्वरनाथ का मंदिर है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे भी एक लोक गाथा प्रचलित है।लोक मान्यता
बटेश्वर के मंदिरों में घंटों की भरमार है। मंदिरों के मुख्य सभा कक्ष में, अगल-बगल के पोर्टिको में, बाहरी अहाते में खड़े पेड़ों में सर्वत्र छोटे-बड़े साईज़ के धातु के घंटे लटके हुए हैं।इन घंटों को सामान्य भक्तजन भी लटका गए हैं और दस्यु सरगना मान सिंह, मोहर सिंह और मलखान सिंह जैसे 'वीवीआईपी' भी। यमुना और चंबल के समूचे बीहड़ अंचल में बटेश्वर की बड़ी 'मान्यता' है।
वाजपेयी से रिश्ता
अपने मुख्यमंत्रित्व काल (अक्टूबर, 2014) में अखिलेश यादव ने बटेश्वर के घाटों की मरम्मत को लेकर एक छोटा सा बजट जारी किया था। बाद में बीजेपी ने इस पर बड़ा हो हल्ला किया। पता चला कि यह महानिदेशक 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा महानिदेशक 'यूपी पर्यटन' को भेजा गया एक रूटीन सा बजट था जिसे मुख्यमंत्री अपने 'योगदान' के रूप में पेश कर रहे थे। 10 फ़रवरी को लोकसभा में एक लिखित उत्तर में पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा था कि केंद्र के समक्ष बटेश्वर को लेकर पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने को लेकर प्रदेश सरकार का कोई प्रस्ताव नहीं है।यह बड़ी आश्चर्यजनक बात है क्योंकि मोदी काल की शुरूआत से लेकर और आगे चलकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के समय बटेश्वर के विकास को लेकर बीजेपी की राज्य सरकार की लम्बी-चौड़ी घोषणाएँ हुई थीं।
रेल परियोजना कहाँ पहुँची?
6 अप्रैल 1999 को आगरा- इटावा (वाया बटेश्वर) रेल लाइन की आधारशिला तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रखी थी। कार्यक्रम में मौजूद तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि जल्द ही इसे 'उत्तर मध्य रेलवे' और 'उत्तर रेलवे' की 'महत्वपूर्ण लिंक अप लाइन' के रूप में विकसित किया जाएगा। पर्यटन मंत्रालय ने तब बटेश्वर के विकास के लिए राज्य सरकार के साथ मिलकर 220 करोड़ की एक योजना तैयार की थी।220 करोड़ तो दूर की बात है, 2 दशकों में 20 करोड़ रूपये भी न तो केंद्र ने खर्च किये हैं न राज्य सरकार ने । 21 वर्षों में इस ' रेलवे हॉल्ट' की प्रगति इतनी है कि यहाँ दो ट्रेनें रुकती हैं।
योगी की घोषणा
अटल जी के देहावसान पर बटेश्वर स्थित यमुना में उनके 'पुष्प कलश' को प्रवाहित करने वालों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी थे। घोषणाओं का दौर एक बार फिर चल निकला था। अटल बिहारी वाजपेयी के निधन वाले दिन ही मुख्यमंत्री ने घोषणा की थी कि उनके नाम से 16 मंडलों में 'रेज़िडेंशियल स्कूलों' की स्थापना होगी।मेले से आय
कई सौ सालों से चल रहा बटेश्वर का ‘पशु मेला’ समूचे उत्तर भारत में प्रख्यात है। 1950 के दशक से इस मेले का आयोजन 'आगरा जिला परिषद' करती है। मेले से लगभग 20 लाख रुपये की आय होती है। बीच में यह फ़ैसला हुआ था कि उक्त आय को बटेश्वर के विकास कार्यों में लगाया जायेगा। कुछ समय बाद यह फ़ैसला बदल दिया गया।क्षेत्र से कई बार सांसद रहे समाजवादी पार्टी के रामजीलाल 'सुमन' कहते हैं कि जब तक बटेश्वर के लिए विशेष राहत राशि जारी नहीं की जाएगी, तब तक इसका विकास संभव नहीं।
बटेश्वर को यदि समुचित शिक्षा और उद्योग के 'रुपहले' केंद्र के रूप में विकसित किया जाता है तो यह दूरदराज़ के सभी युवाओं को आकर्षित करेगा और तब वे बेरोज़गारी और बन्दूक की डगर पर चढ़ाई करने की बजाय विकास पथ को सुनहला बनाने में मददगार साबित होंगे।
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