किसान नेता अशोक तिवारी कहते हैं कि यदि विकास का मौजूदा मॉडल चंबल में लागू हो सका तो यहाँ का ग़रीब और निर्धन बन चुका किसान ग़लत डगर पर चलकर हथियार उठाने को मजबूर हो जायेगा।
विश्व बैंक की मदद से चंबल के बीहड़ों के समतलीकरण और इसे कृषि योग्य बनाने की कोशिश शुरू हुई है। इसमें साज़िश की आशंका जताई जा रही है और कहा जा रहा है कि तबाह हो चुके किसान 'बाग़ियों' की नई फौज के रूप में जन्म लेंगे।
चंबल में डाकुओं की बंदूक़ें गरजती रही हैं। मिल्खा सिंह सौभाग्यशाली था जो पंजाब में पैदा हुआ, चंबल के बीहड़ों में जन्म लेता तो एनकाउंटर में मारा जाता। पानसिंह तोमर दुर्भाग्यशाली था जो चम्बल में पैदा हुआ!
चंबल के बीहड़ में क्या फिर से डाकुओं की हलचल होगी? अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो इनमें से कइयों की तीसरी पीढ़ी के ‘चम्बल में कूदने' की संभावना हर समय बनी रहेगी।