(...पिछले अंक के बाद से)पिछले अंक में इस बात का उल्लेख है कि 60 सालों के तमाम 'प्रयासों' के बावजूद बीहड़ 9.5% की गति से बढ़ रहा है यानी भूमि क्षरण के चलते हर साल बीहड़ 8000 हैक्टेयर भूमि चाट जाता है। 'सुजागृति समाज सेवी संस्था' द्वारा 15 साल पहले किए गए सर्वे में अकेले मुरैना ज़िले में 35 हज़ार हैक्टेयर भूमि बीहड़ों में तब्दील होने की बात रिकॉर्ड में आई थी जिसके बाद उन्होंने विपरई आदि 7 गाँवों में औषधीय पौधों का रोपण शुरू किया जो आज वहाँ प्रगति और विकास की एक बड़ी सच्चाई बन चुके हैं। 'सुजागृति' की 'डोरबंदी' के बड़े मॉडल और प्रो. तोमर का विश्वविद्यालय के उद्यान के प्रयोगों का संदर्भ भी पिछले अंक में आपने पढ़ा है।