‘बा दिना सबेरे सेइ तेज लूह चल रई थी। जेठ को महीनो, सबेरे आठ बजे सेइ लग रओ कि फुल दोपहरिया है गयी है। राकेस दीक्षित जी ने मेई ड्यूटी पास के जैन मंदिर बारे केम्प में लगाय दयी जामें सबई बागी अपने अस्लाह (हथियार) संग पहुँच रये थे। बिनके काजे महां खाना-पीना और ठंडे पानी वगेरा को इंतज़ाम हतो। जैन मंदिर केम्प में बागीयन को आना बड़े सबेरे से चालू ओ। सबसे पहले लाल सिंह पहुंचो। जे तगड़ा, काला जबर! बाके संग बाके गेंग बारे हते। फिर जनक सिंह पहुंचो। बाके पीछे कामता, फिर हेतसिंह ....एक एक करके 11 गेंग बा केम्प में पहुँच गए। भीड़ बढ़ती जाय रई हती। पेड़ों के नीचे, खुले में, जिधर देखो आदमी ही आदमी। लाख -दो लाख से ज्यास्ती आदमी। जब भी कोई बागी मंच पे आतो, गाँधी जी की फोटू के सामने हथियार धरतो, भीड़ नारा लगती- हर हर महादेव!’
मिशन चम्बल घाटी -2: आत्मसमर्पित डाकू- बीहड़ लांघने को तैयार तीसरी पीढ़ी
- विचार
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- 11 Jun, 2020

आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद चम्बल नदी और उसके बीहड़ चम्बल सेंड, क्षेत्र के पिछड़ेपन और कंधे पर बंदूक़ लटकाये 'बाग़ियों' के लिए याद किये जाते रहे हैं। सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, वायदे उसके चाहे जितने रंगीन और लुभावने हों, चम्बल घाटी का न तो पिछड़ापन दूर हुआ है, न यहाँ विकास की कोई धारा बही है और न कभी डाकू समस्या से इसे निजात मिली है। अनिल शुक्ल ने चम्बल के इन बीहड़ों का व्यापक अध्ययन किया है और इस इलाक़े से जुड़े रहे वरिष्ठ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञों और पूर्व डाकुओं से लम्बी बातचीत की है। चम्बल के इस समूचे परिदृश्य को हम सिलसिलेवार शृंखला में आपके समक्ष पेश कर रहे हैं।
वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता रामसिंह आज़ाद बताते ही जा रहे हैं। एक के बाद एक, उनकी आँखों में पुराने दृश्य जैसे जीवंत होते जाते हैं। यह नज़ारा यमुना के बीहड़ों में बने सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल बटेश्वर (उप्र) का है जहाँ 3 जून 1976 को चम्बल-यमुना के बीहड़ों में आतंक का पर्याय बने 11 गिरोहों के 75 डाकुओं ने सर्वोदयी नेता एस एन सुब्बाराव की पहल पर यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायन दत्त तिवारी के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। इस मौक़े पर केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री प्रकाशचंद सेठी भी मौजूद थे। (पढ़ें- मिशन चम्बल घाटी-1)