‘यह उस नायक को पुनर्जीवित करने की कोशिश है जिसे भुला दिया गया था।’ मशहूर अभिनेता इरफ़ान ख़ान ने यह वक्तव्य 10 साल पहले 'टाइम' पत्रिका द्वारा लिए गए एक इंटरव्यू में अपनी फ़िल्म ‘पानसिंह तोमर’ के संदर्भ में दिया था। 8 साल बाद फ़िल्म 'पानसिंह तोमर' एक बार फिर नए सिरे से ‘पुनर्जीवित’ होने वाली है। इस बार चर्चा के केंद्र में है पानसिंह का भतीजा। कभी गैंग में नंबर 2 की हैसियत पर रहा भतीजा बलवंत सिंह तोमर फ़िल्म के निर्माता रोनी स्क्रूवाला (यूटीवी) और निर्देशक तिग्मांशु धूलिया के ख़िलाफ़ अविश्वास और धोखाधड़ी का मुक़दमा लेकर सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने वाला है। उसका कहना है कि उसने ही बहुत सारी बैठकों में फ़िल्म के लेखक संजय चौहान और निर्देशक को अपने चाचा पानसिंह तोमर की संपूर्ण जीवनी से अवगत कराया था। उसकी यही 'ब्रीफिंग' फ़िल्म की पटकथा का आधार बनी थी। फ़िल्म के निर्माता और निर्देशक ने इस एवज़ में उसे 40 लाख रुपये देने का वायदा किया था, जिससे बाद में वे मुकर गए।
मिशन चम्बल घाटी -1: फ़िल्म पानसिंह तोमर पर चलेगा मुक़दमा
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- 10 Jun, 2020

आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद चम्बल नदी और उसके बीहड़ चम्बल सेंड, क्षेत्र के पिछड़ेपन और कंधे पर बंदूक़ लटकाये 'बाग़ियों' या डाकुओं के लिए याद किये गए हैं। सरकार चाहे जिस पार्टी की हो, वायदे उसने चाहे जितने रंगीन और लुभावने किये हों, चम्बल घाटी का न तो पिछड़ापन दूर हुआ है, न यहाँ विकास की कोई धारा बही है और न कभी डाकू समस्या से इसे निजात मिली है। अनिल शुक्ल ने चम्बल के इन बीहड़ों का व्यापक अध्ययन किया है और इस इलाक़े से जुड़े रहे वरिष्ठ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों से लेकर राजनीतिज्ञों और पूर्व डाकुओं से लम्बी बातचीत की है। चम्बल के इस समूचे परिदृश्य को हम सिलसिलेवार शृंखला में आपके समक्ष पेश कर रहे हैं।
1 अक्टूबर 1981 में पानसिंह तोमर गिरोह के साथ हुई अंतिम पुलिस मुठभेड़ के बीच जिसमें पानसिंह सहित 14 लोग हताहत हुए थे, बलवंत तोमर भोर के झुटपुटे का लाभ उठाकर पुलिस के 2 सिपाहियों को घायल करता हुआ मौक़े से फ़रार हो गया था।