डॉ. रमेश उपाध्याय, महानतम जनवादी लेखकों में से एक, विचारक, हरदिल-अज़ीज उस्ताद, बुद्धिजीवी, का 23-24 अप्रैल को रात लगभग 1. 30 बजे देहांत हो गया।
क्षमा करना, मैं आपकी हत्या का मूक-दर्शक बना रहा!
- श्रद्धांजलि
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- 27 Apr, 2021

देश की साहित्य अकादमी और दिल्ली की हिंदी अकादमी के अफ़सर अब शायद शोक सभाएं करेंगे। मानो वे रमेश जी के मरने का इंतज़ार कर रहे थे। ऐसी साहित्यिक और सांस्कृतिक तंज़ीमों पर ताला लगा देना चाहिये जो अपने जीवित मनीषियों को मौत से बचा सकें लेकिन इस बात का ढंढोरा पीटें कि वे साहित्य और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के काम में लगे है।
सब मरते हैं, बुद्ध ने चुनौती दी थी कि कोई ऐसा घर दिखाओ जहाँ मौत न हुयी हो, इस चुनौती को किसी ने आज तक स्वीकार नहीं किया है। लेकिन रमेश उपाध्याय अपनी मौत नहीं मरे हैं। उनकी हत्या हुई है, यह में बहुत ज़िम्मेदारी के साथ कह रहा हूँ।
मृत्यु नहीं, हत्या
उनके पूरे परिवार ने 3 अप्रैल से 5 अप्रैल के बीच टीके लगवाये थे। लगभग 10 दिनों बाद जब कोरोना होने के लक्षण ज़ाहिर हुए तो कोविड टेस्ट कराने का संघर्ष शुरू हुआ, 4 दिन बाद यह हो सके, 3 दिन बाद पॉज़िटिव रिपोर्ट आईं और फिर एक और लम्बी जद्दोजहद लड़ाई किसी अस्पताल में बिस्तर की तलाश की शरू हुयी। दिल्ली एनसीआर छान मारा, ज़िम्मेदार लोगों के सामने गिड़गिड़ाए।