इरफ़ान ख़ान की मृत्यु एक आकस्मिक ट्रेजडी की तरह ज़रूर है लेकिन सचाई यह भी है कि ख़ुद इरफ़ान को, उनके परिवार को और उनके प्रशंसकों को इसके आने की आशंका थी। कह सकते हैं कि पिछले डेढ़-दो साल (2018) से इरफ़ान एक ख़ास तरह के कैंसर की वजह से  मृत्यु के साथ आँख मिचौली खेल रहे थे। कुछ समय तक उन्होंने उसे छकाया और छकाते- छकाते `अंग्रेज़ी मीडियम’ फ़िल्म भी कर डाली। लेकिन मृत्यु को हमेशा के लिए छकाया भी नहीं जा सकता है। छकते छकते अचानक ही घेर लेती है। इसी वजह से हिंदी फ़िल्म उद्योग के इस चहेते कलाकार ने आख़िरकार सबको टाटा–बायबाय कर दिया।