निर्देशक आशुतोष गोवारिकर की फ़िल्म 'पानीपत' को लेकर एक राजनैतिक लड़ाई शुरू हो गई है जो जाट समुदाय के लोगों द्वारा फ़िल्म मीडिया में लड़ी जा रही है। इस समुदाय का आरोप है कि इसमें भरतपुर के जाट राजा सूरजमल के चरित्र को जिस तरह पेश किया गया है वह ग़लत और वास्तविकता के विपरीत है। राजस्थान में यह बड़ा मुद्दा बन गया है और वहाँ की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी इस लड़ाई में कूद पड़ी हैं और भरतपुर राज परिवार से जुड़े राजस्थान के मंत्री कुंवर विश्वेंद्र सिंह भी। और मजाक़ में तो कहा ही जा सकता है कि पानीपत की चौथी लड़ाई शुरू हो गई है। इस फ़िल्म पर प्रतिबंध लगाने की माँग राजस्थान में शुरू हो गई है।
पानीपत की चौथी लड़ाई! फ़िल्म के ख़िलाफ़ क्यों हैं जाट?
- सिनेमा
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- 13 Dec, 2019

फ़िल्म 'पानीपत' को लेकर एक राजनैतिक लड़ाई शुरू हो गई है। माना कि इतिहास पर आधारित फ़िल्मों में भी कई जगह कल्पना का सहारा लिया जाता है, लेकिन ऐसे में क्या इतिहास से छेड़छाड़ की छूट मिलनी चाहिए? और यदि छूट मिले तो किस हद तक? क्या फ़िल्म के निर्देशक गोवारिकर ने सदाशिव राव की छवि को बेहतर बनाने के लिए सूरजमल की छवि को ग़लत तथ्य के साथ पेश किया है?
इस मसले को दो तरह से देखा जाना चाहिए। एक तो यह कि क्या प्रतिबंध लगाने की माँग जायज़ है। जो लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी के पक्षधर हैं वे कभी नहीं चाहेंगे कि `पानीपत’ या कोई और फ़िल्म प्रतिबंधित हो। प्रतिबंध एक लोकतांत्रिक समाज के चरित्र के ख़िलाफ़ होता है इसलिए राजनैतिक नेता या किसी ख़ास जाति या समुदाय के लोग किसी फ़िल्म या साहित्यिक रचना पर प्रतिबंध की माँग करें तो उसे जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। वैसे भी गोवारिकर की यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर झंडे नहीं गाड़ रही है और इतिहास भी नहीं बदलने जा रही है।