गीता कोड़ा
बीजेपी - जगन्नाथपुर
हार
गीता कोड़ा
बीजेपी - जगन्नाथपुर
हार
चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला
जीत
सैकड़ों दिलों में उन्होंने प्यार का जज्बा जगाया लेकिन अपने प्यार का इज़हार वह कर ही नहीं पायीं। दूसरी बार प्यार जागा तो उसे हासिल करने में 10 साल से ज़्यादा का समय लग गया। प्यार की ऐसी दास्तान की नायिका और रूपहले पर्दे की वो हसीन अभिनेत्री निम्मी अब इस दुनिया में नहीं रहीं।
1933 में उत्तर प्रदेश के फतेहाबाद में जन्मी नवाब बानो उर्फ़ निम्मी को इत्तिफ़ाक़ से कम उम्र में ही फ़िल्मों में काम करने का मौक़ा मिल गया। यह मौक़ा दिया राजकपूर ने। फ़िल्म थी बरसात। फ़िल्म सुपर हिट हुई। हिट होने का क्रेडिट राज कपूर और नर्गिस की जोड़ी के अलावा शंकर जय किशन के संगीत को भी मिला लेकिन इसके बावजूद निम्मी की मासूम और अल्हड़ ख़ूबसूरती दर्शकों के दिलो-दिमाग़ पर छा गयी। इसके बाद तो निम्मी ने सभी बड़े अभिनेताओं के साथ फ़िल्में कीं। सबसे ज़्यादा पाँच फ़िल्में दिलीप कुमार के साथ। दिलीप के साथ फ़िल्म ‘अमर’ (1954) के सेट पर काम करते समय निम्मी ने दिलीप कुमार को दिल दे दिया। लेकिन जब उन्हें पता चला कि इस फ़िल्म में उनके साथ काम कर ही उनकी प्यारी सहेली मधुबाला दिलीप को टूट कर चाहती हैं और दिलीप कुमार भी मधुबाला को प्यार करते हैं तो निम्मी खामोश हो गयीं और ऐसी ख़ामोश हुईं कि फिर कभी इस मुद्दे पर किसी के सामने ज़बान नहीं खोली।
इससे पहले फ़िल्म बरसात के लेखक अली रज़ा निम्मी को ‘बरसात’ के सेट पर ही दिल दे चुके थे। फिर अली रज़ा ने बड़ी समझदारी से निम्मी की निकटता की कोशिशें शुरू कीं। कुछ समय में ही उनका निम्मी के घर आना-जाना शुरू हो गया। निम्मी उनके प्यार से अंजान उनकी इसलिये इज़्ज़त करती थीं कि उन्हें (निम्मी को) शायरी का शौक था और अली रज़ा को सैकड़ों ग़ज़लें और हज़ारों शेर याद थे। इसके अलावा महिलाओं को लेकर अली रज़ा के गंभीर और शालीन रवैये से निम्मी ही नहीं, उनकी माँ भी प्रभावित हुईं। निम्मी कभी-कभी ख़ुद भी शेर लिखतीं तो अली रज़ा उस पर गंभीरता से राय देते। साथ ही वह निम्मी को अच्छे साहित्य से भी परिचित करा रहे थे जिसका फ़ायदा निम्मी को अभिनय के दौरान मिलने लगा।
इस बीच के आसिफ़ साहब की फ़िल्म मोहब्बत और ख़ुदा की शूटिंग राजस्थान के रेगिस्तान में ऐसी जगह पर शुरू हुई जहाँ दूर-दूर तक कोई बस्ती नहीं थी। निम्मी इस फ़िल्म की शूटिंग के लिए वहाँ मौजूद थीं, जबकि अली रज़ा मुंबई में दो प्रोड्यूसर्स के लिए फ़िल्म लिख रहे थे। दोनों दूर-दूर हो गए लेकिन मोहब्बत जो ना कराए कम है। अली रज़ा ने ऐसी व्यवस्था बना ली कि हर रोज़ निम्मी के पास उनका एक पत्र ज़रूर पहुँचता था।
उसी दौरान निम्मी का जन्मदिन आ गया। उस सुबह जब वो उठीं तो अपना टेंट गुलाब के फूलों से भरा हुआ पाया। रेगिस्तान में खिले हुए गुलाब के इतने फूल उन्हें अली रज़ा ने भिजवाए थे।
आख़िरकार साल 1966 में दोनों ने शादी कर ली। तब तक निम्मी को अहसास होने लगा था कि अब उन्हें पहले जैसे रोल नहीं मिल पा रहे हैं। तब तक वह शोहरत की बुलंदियों पर पहुँच चुकी थीं। उन्हें लगने लगा कि उन्हें फ़िल्मों से जो शोहरत मिली और सम्मान हुआ उसी सम्मान के साथ पर्दे से बिदायी भी होनी चाहिये। फिर निम्मी ने अचानक फ़िल्मों से संन्यास का एलान कर सबको हैरत में डाल दिया। उन्हें अली रज़ा ने समझाया भी कि वह भले ही कम फ़िल्में करें लेकिन काम करती रहें। मगर निम्मी नहीं चाहती थीं कि अब वह बहन, भाभी या माँ का रोल करें।
निम्मी की बहुत ख्वाहिश थी कि वह माँ बनें और अली रज़ा के साथ सुकून से ज़िंदगी बिताएँ लेकिन वह कभी माँ नहीं बन सकीं। साल 2007 में जब अली रज़ा की मृत्यु हुई तो निम्मी बुरी तरह टूट गयीं। तन्हाई उनका मुकद्दर बन गयी। एक ज़माने में सैकड़ों दिलों में अपने हुस्न से प्यार का जज्बा जगाने वाली निम्मी उदास और खामोश रह कर वक़्त गुज़ारती रहीं। बहरहाल, एक दिन तो दुनिया से सबको जाना है, लिहाज़ा निम्मी भी चली गयीं। साल 1986 में आयी फ़िल्म मोहब्बत और ख़ुदा उनकी अंतिम रिलीज़ फ़िल्म थी।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें