निर्मल वर्मा पर मेरी पिछली पोस्ट से कुछ मित्रों की भावनाएँ आहत हो गईं। मेरा ऐसा कोई सचेत इरादा नहीं था। उन सभी मित्रों से मेरा विनम्र आग्रह है कि वे निर्मल वर्मा संबंधी मेरी किसी पोस्ट को पढ़कर भावनाओं के आहत होने का जोखिम न उठाएँ। इस पोस्ट को भी नहीं, क्योंकि इससे वे और अधिक आहत होंगे।
कौन सा आधुनिकता बोध आज प्रासंगिक- प्रेमचंद या निर्मल वर्मा का?
- साहित्य
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- 31 Aug, 2021

साहित्यकार वीरेंद्र यादव के इस पोस्ट पर विवाद हो गया है कि कौन सा आधुनिकता बोध आज प्रासंगिक है प्रेमचंद का या निर्मल वर्मा का? आख़िर निर्मल वर्मा पर उस पोस्ट से कुछ लोगों की भावनाएँ आहत क्यों हो गईं।
निर्मल वर्मा एक कथाकार होने के साथ-साथ एक विचारक और निबंधकार भी थे। जितने उनके उपन्यास और कहानी संग्रह हैं, उससे अधिक उनके निबंध संग्रह हैं। ये सब कूड़ेखाने की भेंट चढ़ने के लिए नहीं हैं। उनके कथाकार पर बात होती रहती है, लेकिन विचार पक्ष पर प्रायः बात नहीं होती। यह अपनी पसंद और प्राथमिकता का मसला है कि कौन कब उनके कथात्मक लेखन की चर्चा करता है, कब वैचारिक लेखन की। इसे विचार बनाम रचनात्मक साहित्य के द्विविभाजन के रूप में क्यों समझा जाए। निर्मल वर्मा ने ‘आधुनिकता और भारतीयता' की अवधारणा पर विस्तार से लिखा है। मैंने उनके लिखे के ही संदर्भ में यह जिज्ञासा प्रकट की कि 'वह कौन सा आधुनिकता बोध है जिसमें वर्णाश्रमी जातिवादी व्यवस्था का क्रिटिक तो दूर उसका समर्थन शामिल है?' इस मुद्दे पर विचार करने के बजाय भक्त मुद्रा में भावनाओं के आहत होने और निर्मल वर्मा पर 'आस्था' डिगने का ख़तरा दिखाई देने लगा। यह भी कहा गया कि मैं पाठकों का रेजिमेंटेशन कर रहा हूँ। गोया कि निर्मल वर्मा इतने छुई मुई हैं कि उनके लेखन को प्रश्नांकित करने मात्र से उनके पाठक उनसे दूर चले जाएंगे!