विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन द्वारा संविधान को मुद्दा बनाए जाने के बीच सत्ता पक्ष की ओर से आपातकाल को फिर से जोर-शोर से मुद्दा बनाया जा रहा है। आख़िर इस पर अब इतना जोर क्यों?
महान साहित्यकारों में से एक मुंशी प्रेमचंद को स्त्री विरोधी साबित करने की कोशिश करने वाले लोग कौन हैं? आख़िर उनके नाम से एक अपुष्ट ख़त को क्यों जारी किया गया है?
क्या भारत में या कहीं भी इसलाम ताक़त के बल पर फैल सकता है? क्या दुनिया का कोई भी धर्म ताक़त से आगे बढ़ सकता है? प्रेमचंद ने इस पर किताब लिखी है। लेखक व आलोचक वीरेंद्र यादव ने उनके लिखे का अंश फ़ेसबुक पर साझा किया है।
‘महाभोज’ लिखने की प्रेरणा के मूल में आपातकाल के बाद सत्ता परिवर्तन के दौर में 1977 में बिहार के बेलछी गाँव का वह सामूहिक दलित हत्याकांड था, जिसने इंदिरा गांधी की वापसी और राजनीतिक पुनर्जीवन का द्वार खोला था।
साहित्यकार वीरेंद्र यादव के इस पोस्ट पर विवाद हो गया है कि कौन सा आधुनिकता बोध आज प्रासंगिक है प्रेमचंद का या निर्मल वर्मा का? आख़िर निर्मल वर्मा पर उस पोस्ट से कुछ लोगों की भावनाएँ आहत क्यों हो गईं।