जिस तरह मंडल आयोग की सिफारिशें लागू किये जाने पर राम मंदिर के मुद्दे को गरम किया गया था, उसी तर्ज पर संविधान के मुद्दे की काट के लिए इमर्जेंसी के जिन्न को ज़िंदा किया जा रहा है। एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि आज की नई पीढ़ी को यह मालूम होना चाहिए कि किस तरह से संविधान को स्थगित कर इंदिरा गाँधी ने आपातकाल लागू किया था। तो नई पीढ़ी को यह भी बताना चाहिए कि 25 जून की रात आपातकाल लागू हुआ था, लेकिन उसकी पृष्ठभूमि में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा का 12 जून का इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री पद से बेदखल करने का वह निर्णय था, जिसके बारे में लंदन टाइम्स ने अपने संपादकीय में टिप्पणी की थी कि 'यह निर्णय ऐसा ही था कि जैसे ट्रैफिक उल्लघंन के लिए एक प्रधानमंत्री को अपने पद से बर्खास्त कर दिया जाए।'
आपातकाल के जिन्न को ज़िंदा क्यों किया जा रहा?
- विचार
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- 1 Jul, 2024

विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन द्वारा संविधान को मुद्दा बनाए जाने के बीच सत्ता पक्ष की ओर से आपातकाल को फिर से जोर-शोर से मुद्दा बनाया जा रहा है। आख़िर इस पर अब इतना जोर क्यों?
यहाँ उस समूचे घटनाक्रम का उल्लेख न कर इतना ही कहना पर्याप्त है कि आपातकाल की घोषणा संघ समेत दक्षिणपंथी ताकतों की इंदिरा गाँधी को पद से बेदखल करने के मंसूबों को विफल करने का संवैधानिक उपाय था। यहाँ यह भी गौरतलब है कि जिस आपातकाल को लेकर इंदिरा गाँधी को संविधान विरोधी बताया जा रहा है, उसी आपातकाल के लागू होने के दो महीने के बाद तत्कालीन संघ प्रमुख बाला साहब देवरस ने 25 अगस्त, 1975 को इंदिरा गाँधी को लिखे अपने पत्र द्वारा 15 अगस्त को उनके द्वारा दिये गये भाषण पर बधाई दी और आरएसएस पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने की याचना की। इसके बाद 10 नवम्बर 1975 को लिखे गए एक अन्य पत्र के द्वारा देवरस ने सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यक्रमों में संघ द्वारा सरकार से सहयोग करने का भी विश्वास जताया था। यह सारा विवरण क्रिस्टोफ जेफ्रोलाट ने अपनी पुस्तक 'दि हिंदू नेशनलिस्ट मूवमेंट एंड इंडियन पॉलिटिक्स' में दर्ज किया है। इस समूचे दौर में इंदिरा गाँधी के निशाने पर दक्षिणपंथी ताक़तें थीं। संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्षता' और 'समाजवाद' शब्द जोड़े जाने के पीछे यही नज़रिया था। लेकिन इंदिरा गाँधी के अपने घर में संजय गाँधी की उपस्थिति ने इस समूचे परिदृश्य को उल्टी दिशा देने का काम किया।