कुछ लेखकों की किताबें या कुछ रचनाकारों की रचनाएँ ऐसी होती हैं जो किसी भी कालखंड में लिखी गईं हों पर प्रासंगिक बनी रहती हैं। समय और काल का उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उन किताबों या रचनाओं की प्रासंगिकता को बनाये रखने में हमारे समाज और राजनीति की बड़ी भूमिका होती है। इन किताबों की प्रासंगिकता भले ही लेखक या रचनाकार की सफलता हो सकती है लेकिन एक राष्ट्र के रूप में यह हमारी विफलता की गवाही देता है। साथ ही यह हमें सामूहिक रूप से आत्म चिंतन, आत्म मंथन, आत्म निरिक्षण और आत्म विश्लेषण के लिए एक अवसर भी प्रदान करता है।