रामगढ़ (नैनीताल)। रामगढ़ डायलॉग के दूसरे दिन का दूसरा सत्र उत्तराखंड राज्य पर था। विषय था उत्तराखंड- आकांक्षा, हकीकत और उम्मीद। इस विषय पर चर्चा के दौरान राज्य आंदोलन का हिस्सा रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों और वरिष्ठ पत्रकारों ने राज्य के मौजूदा स्वरूप पर चिंता जाहिर की।
पर्यावरणविद एवं राज्य आंदोलन का हिस्सा रहे चारू तिवारी ने कहा कि ऐसे विकास का कोई मतलब नहीं है, जिसमें स्थानीय आम आदमी शामिल न हो। बीते 21 वर्षों में पहाड़ों को काटकर सड़क, सुरंग और बांध बनाने का काम किया गया है, लेकिन क्या इस विकास में राज्य के आम आदमी की भागीदारी है। हिमालयी क्षेत्र वास्तविक स्वरूप में बना रहे यह न केवल पूरे देश बल्कि एशिया के लिए भी उतना ही जरूरी है।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन का हिस्सा रहे भुवन पाठक ने कहा कि आज राज्य में जंगल के नाम पर सिर्फ चीड़ के पेड़ बचे हैं, जिसमें वन्य जीवों को न भोजन मिल रहा है और न संरक्षण। यही कारण है कि वन्य जीव आबादी वाले क्षेत्र में आकर हमला कर रहे हैं।
सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश भाई ने कहा कि राज्य को प्राकृतिक रूप से बचाए रखने के लिए, जल-जंगल और जमीन के लिए एकीकृत नीति की आवश्यकता है। ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिए हमारी नदियों पर 2008 तक 558 बांध बना दिए। सरकार ने कहा कि 30 हजार मेगावाट बिजली बनेगी, जबकि उत्तराखंड की जरूरत दो हजार मेगावॉट की थी।
वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी ने ऑल वेदर रोड परियोजना पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा, "यह प्रकृति के साथ खिलवाड़ है। हम चारधाम दर्शन के लिए नहीं, पिकनिक स्पॉट के लिए सड़क बना रहे हैं।"
वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरण मामलों पर काम कर रहे हृदयेश जोशी ने कहा कि पहाड़ पर सड़क बनाते वक्त नियम है कि सड़क बनाने के लिए जितना पहाड़ काटा जाएगा, उसी कटे हुए पत्थर की सड़क बनाई जाएगी, लेकिन यहां पहाड़ काटकर नदियों में गिराए जा रहे हैं।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तराखंड में 21 वर्ष के सफर के दौरान परिवर्तन भी दिखाई देता है। आज यहां के किसान खेती में नए-नए प्रयोग कर रहे हैं। सेब की नई प्रजाति से लेकर कीवी की खेती तक का दायरा बढ़ रहा है।
अंबरीश कुमार ने आगे कहा, “ट्राउट मछली पाली जा रही है जो काफी मुनाफा देने वाली है। मुझे लगता है कि युवा पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की दिशा में भी काम करेगी।”
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