कई अर्थों में महादेवी वर्मा हिंदी की विलक्षण कवयित्री हैं। उनमें निराला की गीतिमयता मिलती है, प्रसाद की करुण दार्शनिकता और पंत की सुकुमारता- लेकिन इन सबके बावजूद वे अद्वितीय और अप्रतिम ढंग से महादेवी बनी रहती हैं। उनके गीतों से रोशनी फूटती है, संगीत झरता है। शब्द उनके यहाँ जैसे कांपते हुए फूल हो उठते हैं- लेकिन अपनी तरह की आँच और ऊष्मा से भरे हुए और अपनी कोमलता के साथ एक अनूठी दृढ़ता का संवहन करते हुए। उनके व्यक्तित्व की तरह ही उनकी कविता की शुभ्र चादर पर भी जैसे कोई धूल-धब्बा नहीं टिकता। लेकिन अगर वे सिर्फ़ छायावादी संस्कारों तक सिमटी कवयित्री होतीं तो पंत की तरह लगभग अप्रासंगिक सी हो चुकी होतीं या प्रसाद-निराला की तरह ऐसी दूरस्थ, जिनको प्रणाम किया जा सकता है, जिनसे प्रेरणा ली जा सकती है लेकिन जिनका अनुसरण नहीं किया जा सकता है।
मोतियों की हाट और चिनगारियों का एक मेला
- साहित्य
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- 27 Mar, 2021

हिंदी साहित्य की प्रख्यात कवयित्री महादेवी वर्मा की शुक्रवार को 114वीं जयंती मनाई गई।