दिल्ली की सरहदों पर चल रहे किसान आंदोलन के विरोधियों को ऐसे ही किसी लम्हे का इंतज़ार था। उन्हें बस एक चूक चाहिए थी जिसके आधार पर वे इस समूचे आंदोलन को ख़ारिज कर दें। मंगलवार की ट्रैक्टर परेड के दौरान कुछ जगहों पर उनकी हिंसा और उनके उत्पात ने यह बहाना मुहैया करा दिया। दो महीने से ज़्यादा समय से बिल्कुल शांतिपूर्ण ढंग से चल रहे इस आंदोलन के दूध में जैसे एक मरी हुई छिपकली गिर गई और सारा दूध बेकार हो गया।
किसान आंदोलन की असली चुनौती अब है
- विचार
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- 29 Jan, 2021

26 जनवरी को आख़िर क्या-क्या हुआ जो अस्वीकार्य और निंदनीय था। पहली जो अस्वीकार्य चीज़ थी, वह लाल क़िले पर एक धार्मिक झंडा लगाने की हरकत थी।
लेकिन ठीक से समझने की कोशिश करें कि 26 जनवरी को आख़िर क्या-क्या हुआ जो अस्वीकार्य और निंदनीय था और किन चीज़ों को उसकी आड़ में ख़ारिज या अनदेखा किया जा रहा है।