दिल्ली की सरहदों पर चल रहे किसान आंदोलन के विरोधियों को ऐसे ही किसी लम्हे का इंतज़ार था। उन्हें बस एक चूक चाहिए थी जिसके आधार पर वे इस समूचे आंदोलन को ख़ारिज कर दें। मंगलवार की ट्रैक्टर परेड के दौरान कुछ जगहों पर उनकी हिंसा और उनके उत्पात ने यह बहाना मुहैया करा दिया। दो महीने से ज़्यादा समय से बिल्कुल शांतिपूर्ण ढंग से चल रहे इस आंदोलन के दूध में जैसे एक मरी हुई छिपकली गिर गई और सारा दूध बेकार हो गया।