दिल्ली की सरहदों पर डेढ़ महीने से जारी किसान आंदोलन इस देश के लोकतंत्र का नया इम्तिहान है। एक तरफ़ पंजाब-हरियाणा, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों से आए लाखों किसान हैं और दूसरी तरफ़ अपने दो-तिहाई बहुमत से हासिल जनादेश के अहंकार में डूबी सरकार, जो एक क़दम पीछे हटने को तैयार नहीं है। बीच में बारिश से भीगा यह सर्द मौसम है जो किसी भी आंदोलन के हौसले को गला सकता है, लेकिन इस आंदोलन को नहीं गला पाया है।
किसान संघर्ष: यह नागरिकता बहाली का भी आंदोलन है
- विचार
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- 29 Mar, 2025

शाहीन बाग़ में पहले आतंकवादियों की शह देखी गई, फिर नक्सलवादी होने का इल्ज़ाम लगा, फिर शांति भंग करने का आरोप लगा और अंततः उसके तार दिल्ली के दंगों से जोड़ दिए गए। किसान आंदोलन में भी खालिस्तानी तत्व खोज लिए गए, नक्सली हाथ देख लिया गया और यह सवाल भी पूछा गया कि इनकी फंडिंग कहां से हो रही है। आंदोलन में बैठी औरतों को शाहीन बाग का मान लिया गया और कहा गया कि वे सौ-सौ रुपये में धरना देने के लिए आई हैं।
लेकिन क्या यह आंदोलन रातों-रात खड़ा हो गया है? क्या तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ पैदा हुआ गुस्सा आंदोलन में बदल गया है? सरकार याद दिला रही है और ठीक ही याद दिला रही है कि ये वे क़ानून हैं जिनका वादा दूसरे दल भी अपने घोषणापत्रों में करते रहे और जिसकी ओर कई राज्यों ने कदम भी बढ़ाए हैं।