क्या दिल्ली की सरहदों पर चल रहा किसानों का आंदोलन मोदी सरकार की ‘अन्ना घड़ी’ है? मूलतः गैर राजनीतिक बने रहने की ज़िद के बावजूद मोदी सरकार पर किसान आंदोलन के क्या वैसे ही प्रभाव होंगे जैसे अन्ना आंदोलन के मनमोहन सरकार पर पड़े थे जो ख़ुद को गैर राजनीतिक ही मानता था? या किसी लोकतांत्रिक देश में कोई भी आंदोलन अपनी ज़िद के बावजूद गैर राजनीतिक रह सकता है? क्या उसके अपने राजनीतिक फलितार्थ नहीं होने लगते हैं?