12 मई 2020 ई. की रात दस बज कर अठारह मिनट पर मेरे मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर नाम चमक रहा था – डॉ. अपूर्वानंद। मैंने फ़ोन उठाया और उधर से आवाज़ आई कि ‘नवल जी गुज़र गए।’ मेरे मुँह से अकबकाहट और बेचैनी में निकला कि ‘कब? कैसे?’ हालाँकि यह जान रहा था कि वरिष्ठ आलोचक नंदकिशोर नवल लगभग दस दिनों से अस्पताल में भर्ती हैं। थोड़ी देर पहले ही उनकी पुत्री और हमारी पूर्वा दीदी से उनकी तबीयत के बारे में बातचीत हुई थी। पहले वह घर में गिर गए थे और बाद में उन्हें न्यूमोनिया हो गया जिससे वह उबर नहीं पाए।
प्रो. नंदकिशोर नवल: ज़िंदगी और साहित्य के ईमानदार ‘भावक’
- साहित्य
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- 14 May, 2020

12 मई 2020 ई. की रात दस बज कर अठारह मिनट पर मेरे मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर नाम चमक रहा था – डॉ. अपूर्वानंद। मैंने फ़ोन उठाया और उधर से आवाज़ आई कि ‘नवल जी गुज़र गए।’
दुनिया भर के लोगों के लिए वह प्रो. नंदकिशोर नवल, आलोचक नंदकिशोर नवल, कवि नंदकिशोर नवल और संपादक नंदकिशोर नवल थे, मेरे लिए भी यह सब थे, पर मेरे लिए सब से ज़्यादा थे (‘थे’ क्रिया सबकुछ कह देती है न!) ‘नवल सर’! नवल सर से मैं पिछले बीस वर्षों से जुड़ा हुआ हूँ| उन्होंने मुझे गढ़ा, माँजा, साहित्य का संस्कार एवं विचार दिया और यह विश्वास भी मेरे भीतर भरा कि आज भी अपनी ईमानदार नीयत और मेहनत से जिया जा सकता है।
नवल सर सशरीर अब नहीं हैं। मेरे मन में यही चल रहा है कि किसी के सशरीर न रहने से क्या छूट जाता है? एक भरी-पूरी ज़िंदगी जी कर जाने पर भी ख़ालीपन क्यों लगता है? यह वाक्य और अधिक महसूस हुआ जब नवल सर के छात्र, मेरे शिक्षक और प्रसिद्ध आलोचक प्रो. तरुण कुमार ने आज मुझ से यह कहा कि ‘2018 में केदार जी, (प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह) 2019 ई. में नामवर जी (प्रख्यात आलोचक नामवर सिंह) और 2020 ई. में नवल जी! अब इन तीनों के जाने से हमारे संरक्षक-अध्यापकों का दौर ख़त्म हो गया।’