12 मई 2020 ई. की रात दस बज कर अठारह मिनट पर मेरे मोबाइल की घंटी बजी। स्क्रीन पर नाम चमक रहा था – डॉ. अपूर्वानंद। मैंने फ़ोन उठाया और उधर से आवाज़ आई कि ‘नवल जी गुज़र गए।’
5 मार्च 2020 से ले कर 11 अप्रैल 2020 तक विश्वविद्यालयों को जारी पत्रों ने यह साफ़ किया है कि भारतीय विश्वविद्यालयों को शिक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि सरकार की मात्र एजेंसी समझा जा रहा है।