पिछले दिनों प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर की याद बार-बार दिलाई गई है। भारत की अदालतों में जो कुछ भी हो रहा है, उसके संदर्भ में। ख़ासकर प्रशांत भूषण पर अदालत की हतक के मुकदमे के सिलसिले में। ’क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?’ अलगू चौधरी को खाला का दिया यह उलाहना उद्धृत किया जा रहा है। यह उलाहने से ज्यादा चुनौती है। हिंदी के कुछ वाक्यों को ही अमरता का वह गौरव प्राप्त है जो इस वाक्य ने हासिल कर लिया है।