पिछले दिनों प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर की याद बार-बार दिलाई गई है। भारत की अदालतों में जो कुछ भी हो रहा है, उसके संदर्भ में। ख़ासकर प्रशांत भूषण पर अदालत की हतक के मुकदमे के सिलसिले में। ’क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे?’ अलगू चौधरी को खाला का दिया यह उलाहना उद्धृत किया जा रहा है। यह उलाहने से ज्यादा चुनौती है। हिंदी के कुछ वाक्यों को ही अमरता का वह गौरव प्राप्त है जो इस वाक्य ने हासिल कर लिया है।
अदालतों को देख याद आता है प्रेमचंद का 'पंच परमेश्वर'
- साहित्य
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- 8 Aug, 2020

वामपंथी बुद्धिजीवी जब माओवादी हिंसा या नंदीग्राम, सिंगूर में सीपीएम की हिंसा के ख़िलाफ़ न बोल पाए तो इसी वजह से। वे अपनों से बिगाड़ नहीं कर सकते थे। भारत में हिंदुओं को अपनों से बिगाड़ करना होगा, श्रीलंका में बौद्धों को अपनों से, पाकिस्तान में मुसलमानों को अपनों से, इस्राइल के यहूदियों को अपनों से। ईमान की बात का राज तभी कायम हो पाएगा। ..प्रेमचंद जयंती पर सत्य हिन्दी की विशेष पेशकश अपूर्वानंद की कलम से।