हँसें कि न हँसें, इस पर ख़ासी बहस रही है। एक पूरा का पूरा इलाक़ा ही साहित्य और कला में हँसी पैदा करने के कारोबार के नाम पर खड़ा हो गया है। हँसी का उद्योग! हँसी एक अलग सी चीज़ हो गई है इस रसहीन जीवन में। जीवन एकरस या उबाऊ है, इसीलिए हास्य का घोल बनाकर पिलाना पड़ता है या उसका इंजेक्शन देना पड़ता है।