सोने और ड्रग्स की तस्करी के मामलों ने केरल में वाम मोर्चे की सरकार को हिलाकर रख दिया है। इन दो सनसनीखेज मामलों की जाँच/आँच से मुख्यमंत्री कार्यालय भी नहीं बच पाया है। ताज़ा शिकार हुए हैं वरिष्ठ मार्क्सवादी नेता बालकृष्णन कोडियेरि। बालकृष्णन के छोटे बेटे बिनीश को ड्रग्स तस्करी के मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इस गिरफ्तारी के बाद बालकृष्णन अपनी पार्टी सीपीएम में अलग-थलग पड़ गये और उन्हें पार्टी के प्रदेश सचिव पद से इस्तीफा देना पड़ा।
एक मायने में केरल में सीपीएम की कमान उन्हीं के हाथों में थी। खराब स्वास्थ्य के बावजूद वे पार्टी की कमान संभाले हुए थे। लेकिन बेटे की गिरफ्तारी के बाद उन्हें मजबूरन पार्टी पद छोड़कर लंबी छुट्टी पर जाना पड़ा।
67 साल के बालकृष्णन को 75 साल के पिनराई विजयन के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जा रहा था। बालकृष्णन का इस समय प्रदेश सचिव पद से हटना न सिर्फ उनका निजी बल्कि पार्टी के लिए भी बड़ा नुकसान है।
बालकृष्णन की संगठन पर अच्छी पकड़ है और वे सभी वर्गों और गुटों के नेताओं में समान रूप से प्रभावशाली हैं। लेकिन उनकी इस तरह आकस्मिक छुट्टी से चुनाव की तैयारी में जुटे वामपंथियों को तगड़ा झटका लगा है।
यह सब ऐसे समय में हुआ है जब केरल में विधानसभा चुनाव में सिर्फ सात महीने बचे हैं। चुनाव से ऐन पहले केरल में सत्ताधारी वाम मोर्चे को झटके पर झटके लग रहे हैं। सबसे पहले अरब देशों से सोने और पवित्र कुरान की तस्करी मामले में वाम मोर्चा सरकार की खूब फजीहत हुई। यह मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि ड्रग्स तस्करी का मामला सरकार के गले की फांस बनता नज़र आ रहा है।
सोने की तस्करी का मामला
गौर करने वाली बात यह है कि सोने की तस्करी मामले में खुद मुख्यमंत्री विजयन पर आरोप लगे थे। उनके प्रधान सचिव शिव शंकर को लंबी छुट्टी पर जाना पड़ा। आईएएस अधिकारी शिव शंकर के कई करीबी इस मामले में गिरफ्तार हुए। इन्हीं गिरफ्तारियों की वजह से विपक्षी पार्टियों ने सीधे मुख्यमंत्री विजयन पर हमले बोलने शुरू किये। इस्तीफ़ा देने के लिए उन पर राजनीतिक दबाव बनाया जाने लगा। लेकिन सीपीएम उनके साथ मजबूती से खड़ी रही।
कुरान की प्रतियां मंगवाईं
इसके कुछ ही दिनों बाद अरब देशों से गैर कानूनी तरीके से कुरान की प्रतियां मंगवाये जाने पर वाम मोर्चा सरकार बुरी तरह से घिरी। इस बार निशाने पर रहे मंत्री के. टी. जलील। जलील पर राजनयिक रास्ते से कुरान की प्रतियाँ मंगाने और उन्हें मतदाताओं में बांटने का आरोप लगा। उन पर भी इस्तीफ़े का दबाव बना, लेकिन इस बार भी पार्टी आरोपित नेता के साथ खड़ी रही।
इन दोनों मामलों में वाम मोर्चा सरकार पर आरोप लगे कि उसने राजनयिक रास्ते से संयुक्त अरब अमीरात से सोना और कुरान की प्रतियाँ मंगवाईं। ऐसा करते हुए सरकार ने खुद सीमा शुल्क कानून का उल्लंघन किया और इन मामलों में गैर कानूनी तरीके से रुपयों का लेन-देन भी हुआ।
इसी वजह से न सिर्फ प्रवर्तन निदेशालय बल्कि सीबीआई ने अलग-अलग मामले दर्ज किये और जाँच शुरू की। जाँच के दौरान कई गिरफ्तारियां हुईं। जितनी भी गिरफ्तारियां हुईं उनके संबंध सीधे वामपंथी नेताओं से निकले। इन मामलों को लेकर बढ़ती राजनीतिक गहगहमी के बीच एक और मामले ने वाम मोर्चे के नेताओं की नींद उड़ा दी।
ड्रग्स तस्करी का मामला
यह मामला ड्रग्स तस्करी से जुड़ा है। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की खुदकुशी के बाद कई राज्यों की पुलिस और सीबीआई ने ड्रग्स तस्करी के मामले की जाँच नये सिरे से शुरू की। महाराष्ट्र, कर्नाटक में कई गिरफ्तारियां हुईं। ड्रग तस्कर मुहम्मद अनूप से करीबी संबंध रखने और उसके साथ गैर कानूनी तरीके से रुपयों का लेन-देन करने के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय ने बालकृष्णन के छोटे बेटे बिनीश को गिरफ्तार कर लिया।
पहली बार लगे बड़े आरोप
बालकृष्णन मुख्यमंत्री विजयन के बाद केरल में सबसे ज़्यादा प्रभावशाली वामपंथी नेता हैं। अच्युतानंदन सरकार में वे राज्य के गृह मंत्री थे। उनके बेटे की गिरफ्तारी से वाम मोर्चा और उसकी सरकार को बेहद करारा झटका लगा है। ऐसा पहली बार हो रहा है जब केरल में वाम मोर्चा सरकार पर बड़े घोटालों के आरोप लग रहे हैं और सबसे कद्दावर नेता आरोपों से घिर गये हैं।
केरल तक सिमटा वामपंथ
बड़ी बात यह है कि भारतभर में वामपंथियों की सरकार अब सिर्फ केरल में बची है। यहां अगले साल मई में विधानसभा चुनाव होने हैं और वामपंथी सरकार भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों से घिर गई है। इतना ही नहीं, कोरोना महामारी को रोकने में नाकामी और अस्पतालों में बदइंतज़ामी के अलावा बाढ़ के दौरान राहत कार्यों में ढिलाई को लेकर उसकी काफी बदनामी हुई है।
कांग्रेस-बीजेपी सक्रिय
ऐसे में एक कद्दावर नेता के बेटे की गिरफ्तारी ने वाम मोर्चा को बेहद बुरी स्थिति में डाल दिया है। मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी इसी स्थिति का भरपूर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश में जुट गई है। बीजेपी भी अपनी राजनीतिक ज़मीन मजबूत करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं छोड़ रही है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि केरल में वामपंथियों की इतनी बदनामी पहले कभी नहीं हुई। सत्ता में रहते हुए वाम मोर्चा इतना कमजोर कभी नहीं हुआ। कई जानकारों का कहना है कि बड़े वामपंथी नेताओं के नाम रुपयों की हेराफेरी, ड्रग तस्करी, सोने की तस्करी जैसे मामलों से उछलने से वामपंथियों के पारंपरिक मतदाता जैसे मजदूर, किसान, अति पिछड़ा वर्ग के लोग उससे दूर होते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में वाम मोर्चा के लिए सरकार को बचाना मुश्किल है।
अपनी राय बतायें