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लक्षद्वीप के क़ानूनी अधिकार क्षेत्र को केरल उच्च न्यायालय से कर्नाटक उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने के कथित प्रस्ताव का विवाद क्या है? लक्षद्वीप के क़ानूनी अधिकार क्षेत्र को स्थानांतरित करने संबंधी रिपोर्टों को प्रशासन ने तो सिरे से खारिज कर दिया है, लेकिन मीडिया में जो रिपोर्टें छपी हैं उसका आधार क्या है? एनसीपी के एक नेता और लोकसभा सदस्य ने भी इस तरह का आरोप क्यों लगाया। आख़िर इस मामले ने इतना तूल क्यों पकड़ा?
ऐसा इसलिए कि लक्षद्वीप प्रशासन ने इन रिपोर्टों को भले ही खारिज कर दिया हो, लेकिन लक्षद्वीप के क़ानूनी अधिकार क्षेत्र को बदलने की यह ख़बर तब आई है जब लक्षद्वीप प्रशासन की नीतियों के ख़िलाफ़ केरल उच्च न्यायालय में कई मुक़दमे दायर किए गए हैं। लोग लक्षद्वीप प्रशासन की नीतियों का जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। जिनका विरोध लोग कर रहे हैं उसमें कोरोना से जुड़े नियमों में संशोधन करना, 'गुंडा अधिनियम' की शुरुआत करना और सड़कों को चौड़ा करने के लिए मछुआरों की झोपड़ियों को ध्वस्त करना शामिल है।
उस कथित प्रस्ताव पर इसलिए भी विवाद बढ़ा है क्योंकि लक्षद्वीप और केरल दोनों जगहों की भाषा मलयालम है जबकि कर्नाटक की कन्नड़ है। लक्षद्वीप से केरल उच्च न्यायालय की दूरी क़रीब 400 किलोमीटर है जबकि कर्नाटक उच्च न्यायालय की दूरी क़रीब 1000 किलोमीटर। ऐसे में ऐसी किसी रिपोर्ट पर विवाद तो होना स्वाभाविक है।
लक्षद्वीप में विवाद की शुरुआत दिसंबर में तब हुई जब दमन और दीव के प्रशासक प्रफुल पटेल को लक्षद्वीप की ज़िम्मेदारी दी गई और उन्होंने एक के बाद एक कई विवादास्पद फ़ैसले लिए। इसमें से एक लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 के मसौदे के मामले से जुड़ा है। द्वीप के लोग इस मसौदे को ज़मीन को हड़पने वाला बता रहे हैं। इसके अलावा बीफ़ पर बैन लगाने का क़दम उठाया गया है। अपराध बेहद कम होने के बाद भी गुंडा एक्ट लगाने और ऐसे लोग जिनके दो से ज़्यादा बच्चे हैं, उन्हें पंचायत चुनाव में अयोग्य ठहराने जैसे प्रस्तावों के कारण घमासान मचा।
ये प्रस्ताव और फ़ैसले लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल पटेल द्वारा लाए गए हैं। लक्षद्वीप बीजेपी के अध्यक्ष अब्दुल खादिर हाजी पटेल ने प्रफुल पटेल का समर्थन किया है तो पार्टी के अन्य नेताओं ने उनके फ़ैसलों की आलोचना की है। यहाँ तक कि केंद्रीय स्तर पर भी कुछ नेता प्रशासक के प्रस्तावों के ख़िलाफ़ हैं।
कुछ ही महीनों में प्रफुल पटेल के ख़िलाफ़ लोग सड़कों पर आ गए। वहाँ पर 'लक्षद्वीप बचाओ' का अभियान जोर पकड़ रहा है। ऐसे विरोध के बीच ही केरल हाई कोर्ट में लक्षद्वीप प्रशासन और या तो पुलिस या स्थानीय प्रशासन के ख़िलाफ़ 11 रिट याचिकाएँ दायर की गई हैं।
और इसी बीच लक्षद्वीप के क़ानूनी अधिकार क्षेत्र में कथित बदलाव की ख़बर आई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और लोकसभा सदस्य मोहम्मद फैजल पीपी ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई से कहा, 'यह केरल से कर्नाटक में न्यायिक अधिकार क्षेत्र को स्थानांतरित करने का उनका (पटेल) पहला प्रयास था। वह इसे स्थानांतरित करने के लिए इतने उत्सुक क्यों थे... यह पूरी तरह से पद का दुरुपयोग है। इन द्वीपों के लोगों की मातृभाषा मलयालम है।'
उन्होंने कहा कि किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि उच्च न्यायालय का नाम केरल और लक्षद्वीप उच्च न्यायालय है। उन्होंने पूछा कि क्या इसकी आवश्यकता है और वह प्रस्ताव को कैसे सही ठहरा सकते हैं। फैजल ने कहा कि पटेल से पहले 36 प्रशासक रहे हैं और किसी के पास इस तरह का विचार नहीं था।
'द इंडियन एक्सप्रेस' ने लक्षद्वीप के क़ानूनी जानकारों के हवाले से लिखा है कि मलयालम लिखने और बोलने की भाषा लक्षद्वीप और केरल दोनों जगहों पर है। हाई कोर्ट का क़ानूनी अधिकार क्षेत्र बदलने पर पूरी न्यायिक प्रणाली की प्रक्रिया को बदलना पड़ेगा और इसमें न्यायिक अधिकारी भी शामिल हैं। फ़िलहाल इन न्यायिक अधिकारियों को केरल हाई कोर्ट भेजता है वह इसलिए कि दोनों जगहों की भाषा एक है। रिपोर्ट के अनुसार, लक्षद्वीप की एक नामी वकील सीएन नूरुल हिदया ने पीटीआई से कहा, 'किसी को यह समझना होगा कि केरल उच्च न्यायालय सिर्फ़ 400 किलोमीटर दूर है, जबकि कर्नाटक का उच्च न्यायालय 1,000 किलोमीटर से अधिक है, जिसमें कोई सीधी कनेक्टिविटी भी नहीं है।' उन्होंने कहा कि यदि ऐसा कोई फ़ैसला है तो लोग इसका विरोध करेंगे।
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, लक्षद्वीप के सचिव और ज़िला कलेक्टर, एस आस्कर अली ने कहा कि लक्षद्वीप प्रशासन का केरल के उच्च न्यायालय से कर्नाटक के उच्च न्यायालय में अपने क़ानूनी अधिकार क्षेत्र को स्थानांतरित करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। हालाँकि इससे पहले 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने ख़बर दी थी कि प्रशासक के सलाहकार ए अनबारसु और लक्षद्वीप के कलेक्टर एस आस्कर अली से टिप्पणी लेने के प्रयास सफल नहीं हुए।
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