अब जबकि दिल्ली के पास चल रहे किसान आन्दोलन के चार महीने पूरे हो चुके हैं, कृषि क़ानूनों के अध्ययन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी ने अपनी रिपोर्ट अदालत को सौप दी है।
एनडीटीवी ने कमेटी के सदस्य अनिल घनावत के हवाले से कहा है कि कमेटी ने 19 मार्च को बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के हवाले कर दी।
कमेटी क्यों?
बता दें कि 12 जनवरी, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश में तीनों कृषि क़ानूनों पर अगले आदेश तक के लिए रोक लगा दी थी। इसके साथ ही अदालत ने एक चार-सदस्यीय कमेटी के गठन का एलान किया। इस कमेटी को पहली बैठक से दो महीने में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को देनी थी।
क्या कहा था अदालत ने?
कोर्ट ने कहा कि यदि किसान समस्याओं का समाधान चाहते हैं तो उन्हें इस कमेटी के सामने आकर अपनी बात कहनी ही होगी। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके साथ ही कड़ा रुख अख़्तियार करते हुए कहा कि उसे कमेटी गठित करने का अधिकार है और उसके तहत ही ऐसा कर रही है।
लेकिन किसानों ने इस कमेटी को सिरे से खारिज कर दिया था। किसान संगठनों ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की प्रस्तावित कमेटी के सभी सदस्य इन क़ानूनों के पक्षधर हैं, उन्होंने कई बार इन क़ानूनों का समर्थन किया है और इसलिए उनकी निष्पक्षता संदेह से परे नहीं है।
पंजाब किसान यूनियन के एक नेता ने एनडीटीवी से कहा, हम कमेटी को स्वीकार नहीं करेंगे, इसके सभी सदस्य सरकार के समर्थक हैं और कृषि क़ानूनों को उचित ठहराते रहे हैं।
कौन थे कमेटी में
सरकार की प्रस्तावित कमेटी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जिन लोगों के नाम की सिफ़ारिश की है वे हैं, भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान, शेतकरी संगठन के अनिल घनावत, प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी।शेतकरी संगठन के अनिल घनावत ने कहा था कि उनका संगठन जिन चीजों की माँग लंबे समय से करता रहा है, इन कृषि क़ानूनों में वह आंशिक रूप से पूरा होता है। इसमें सुधार करने की ज़रूरत है।
उन्होंने ठेके पर खेती और दूसरे कृषि सुधारों का समर्थन करते हुए कहा कि सबसे पहले इन सुधारों की माँग बहुत पहले शेतकरी संगठन के शरद जोशी ने की थी।
प्रस्तावित कमेटी के दूसरे सदस्य भूपिंदर सिंह मान भी कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ आन्दोलन चला रहे क्रांतिकारी किसान यूनियन के दर्शन पाल ने कहा, "मैं भूपिंदर सिंह मान को जानता हूँ, वे पंजाब से हैं और वह कृषि मंत्री से मिलकर कानून का समर्थन कर चुके हैं।" बाद में मान ने खुद को कमेटी से अलग कर लिया था।
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