अभी तक सरकार ने दुनिया में सबसे तेज़ विकास दर और फ़ाइव ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का राग अलापना छोड़ा नहीं है लेकिन जिस रफ़्तार में आर्थिक फ़ैसले हो रहे हैं उनसे साफ़ लग रहा है कि सरकार मंदी के डर से परेशान है। कायदे से यह अच्छी बात होनी चाहिए, लेकिन फ़ैसलों की दिशा और चरित्र से लगता है कि सरकार इस अवसर का इस्तेमाल भी अमीरों और विदेश से हमारी अर्थव्यवस्था के सूत्र संचालित करने वालों के लाभ के लिए ही काम कर रही है। अभी भी अर्थव्यवस्था में जान लौटाने या हमारी ज़रूरतों के हिसाब से फ़ैसले लेने की बात दिखाई नहीं देती। संभव है जल्द ही कुछ और क़दमों की घोषणा हो पर बीते शुक्रवार को वित्त मंत्री द्वारा घोषित 3 क़दमों, रिज़र्व बैंक से 1.76 लाख करोड़ (यह रक़म आश्चर्यजनक रूप से कथित टू-जी घोटाले के नुक़सान के क़रीब जाती है) और फिर कैबिनेट द्वारा कोयला से लेकर अनेक क्षेत्रों में निवेश के द्वार खोलने तक से संकेत साफ़ हैं।
आरबीआई के पैसे से मंदी रुकेगी या 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनेगी?
- अर्थतंत्र
- |
- |
- 29 Aug, 2019

आख़िर घर का गहना भी बिके और खेत न ख़रीदा जाए, बेटी की शादी अच्छे घर में न हो, इलाज पर या बच्चों की अच्छी पढ़ाई पर ख़र्च न हो तो उस घर को बिगड़ा ही मानते हैं। गहना बिके और मौज-मस्ती तथा चमक-दमक पर ख़र्च हो तो घर बर्बाद ही होगा। और बर्बादी रोकने के नाम पर यह सब करना तो ज़्यादा चिंता की बात है।