चुनाव पास आते ही आकर्षक आंकड़ों की बारिश शुरू हो गई है। और मामला सिर्फ बीते साल, महीने या तिमाही के आंकड़ों का नहीं है, अगले साल से लेकर 2047 में भारत को विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनाने तक के हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अगले साल के लिए जीडीपी में आठ फीसदी का विकास दर बता दिया है। अभी हाल के समय तक आंकड़ों का खेल ऐसा नहीं था। विदेश व्यापार और औद्योगिक उत्पादन में एक महीने उतार दिखता था तो किसी महीने चढ़ाव। विदेश व्यापार का घाटा कभी रिकॉर्ड स्तर पर दिखता था तो कभी आयात कम होने से काफी कम। एक गरीबी के ही आँकड़े को लीजिए तो कई तरह के आँकड़े हाजिर हैं, जबकि असलियत यही है कि सरकारी स्तर पर आंकड़े जुटाने का काम मनमाने ढंग से हो रहा है। अगर तस्वीर गुलाबी न दिखे तो आँकड़े रोके भी जा रहे हैं और उसके जरा भी अच्छे हिस्से को शोर मचाकर बताया जाता है। हमारे जीवन के निर्वाह और आर्थिक हैसियत को बताने वाली लगभग तीन दर्जन सूचनाओं से लैस जनगणना का काम रोका हुआ है जबकि इसमें अभी ही पाँच साल की देरी हो चुकी है। विश्व युद्ध और महामारी में भी न रुकी जनगणना अब क्यों रोकी गई है इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। खैर।
लोकसभा चुनाव से पहले पेश किए जा रहे गुलाबी आँकड़ों का सच क्या?
- अर्थतंत्र
- |
- |
- 2 Apr, 2024

क्या आपको पता है कि जनगणना जैसा अहम काम भी क्यों रोका गया है जिसे विश्वयुद्ध और कई तरह की महामारी में भी नहीं रोका गया था? अब अर्थव्यवस्था से लेकर रोजगार तक के आँकड़े क्या संकेत देते हैं?
इन बातों से जो धनात्मक बातें हैं उनका महत्व कम नहीं होता। जीएसटी का संग्रह और भविष्य निधि कोष के सदस्यों की संख्या निरंतर बढ़ती गई है जिसे सरकार अपनी उपलब्धि ही नहीं, रोजगार बढ़ाने के वायदे को पूरा करने की तरह पेश कर रही है। मोदी राज के ज्यादा समय पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत कम रही है और सरकार ने उस अनुपात में आम उपभोक्ताओं को राहत न देकर मोटा राजस्व जमा किया जिसका उपयोग-दुरुपयोग क्या हुआ यह हिसाब भी साफ़ नहीं है।