‘शताब्दी में ख़ास बजट’ कहकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने पहली फ़रवरी को जो वित्त विधेयक प्रस्तुत किया उसमें किसी किसी क़िस्म के ग़रीब समर्थक, किसान समर्थक, महिला समर्थक और गांव समर्थक दिखावे की भी ज़रूरत नहीं दिखी। उसमें सबसे बड़ी रियायत के नाम पर 75 पार के बुजुर्गों को, अगर उनकी एक रुपए की भी आमदनी नहीं होती और उन्होंने सरकार द्वारा तय बैंकों में ही अपने खाते रखे हैं तब, आयकर का रिटर्न भरने से छूट ही है या फिर सोना-चान्दी सस्ता होना (अगर आपमें पचास हज़ार प्रति दस ग्राम सोना खरीदने की क्षमता बची हो) है। वरना लगभग अस्सी लाख गाड़ियों को स्क्रैप में बेचने, पूरे बीमा क्षेत्र को विदेशी कम्पनियों के हवाले करने, बैंकों के सारे एनपीए और डूबे कर्ज को एक प्राधिकार के हवाले करके उनको सारी जबाबदेही से मुक्त करने और सैनिक स्कूल तक को विदेशी निवेशकों के हवाले करने, सरकारी परिसम्पत्तियों को बेचकर मोटी रक़म जुटाने, शेयर बाज़ार की कमाई को हर बाधा-बन्धन से मुक्त करने और चुनाव वाले राज्यों के लिए बीजेपी को लाभ देने वाली घोषणाओं को करने में कोई झिझक नहीं दिखाई गई है।
इस बार किसका बजट और किसको लाभ!
- अर्थतंत्र
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- 4 Feb, 2021

यह सही है कि इंफ्रास्ट्रक्चर के काम से रोज़गार बढ़ेगा, अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। लेकिन यह कब तक होगा और कितना लाभकर होगा, यह पूरी तरह अनिश्चित है और इस सरकार का रिकॉर्ड ऐसा है कि घोषित योजनाओं पर काम हो यह भरोसा करना भी मुश्किल है। बेचारे बेरोज़गार लोग क्या इतना इंतज़ार कर सकते हैं?