‘मेक इन इंडिया’ के ज़रिए देश को मैन्युफैक्चिरिंग यानी विनिर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना देने की घुट्टी पिलाने के सवा 10 साल बाद आखिरकार मोदी सरकार ने मान लिया कि इस मोर्चे पर वह विफल है। ताज़ा आर्थिक सर्वेक्षण में विनिर्मित वस्तुओं के मामले में चीन से आयात पर भारी निर्भरता पर जितनी गहरी चिंता जताई गई है वही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत को दुनिया का कारखाना बना देने के बड़बोले दावे की विफलता का कबूलनामा है। इससे साफ़ है कि सालाना दो करोड़ रोजगार देने और हरेक नागरिक के खाते में 15 लाख रुपए जमा करने के वायदे की तरह प्रधानमंत्री मोदी का मेक इन इंडिया संबंधी दावा भी जुमला साबित हुआ है।
मेक इन इंडिया की विफलता का कबूलनामा है आर्थिक सर्वेक्षण!
- अर्थतंत्र
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- 31 Feb, 2025

मोदी सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण में क्या मेक इन इंडिया की विफलता को स्वीकार नहीं किया गया है? जानें इसके पीछे के कारण और आर्थिक प्रभाव।
गौरतलब है कि सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने कलपुर्जों वाले शेर शुभंकर के नीचे खड़े होकर बड़े जोरशोर से ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के ज़रिए विनिर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाने का सुनहरा ख्वाब दिखाया था। उसके बाद भारत में व्यापार करने संबंधी नियमों में ढील, पूंजी निवेश आकर्षित करने को उद्योगों को लगभग मुफ्त जमीन देने, पर्यावरण नियमों में ढील देने, उद्योगों को उत्पादन से जुड़ा इंसेंटिव सरकार द्वारा देने तथा कर्मचारियों की भविष्यनिधि का पैसा सरकार द्वारा देने सहित सरकारी खजाना डटकर लुटाया गया। दोनों हाथ से जनता का पैसा पूंजीपतियों पर लुटाने के बावजूद विनिर्माण में हमारे पराश्रित ही रहने की पोल आख़िरकार प्रधानमंत्री मोदी के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनन्त नागेश्वरन ने ही खोल दी।